धर्म प्रचार की साधना

August 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री धूमसिंह वर्मा, समौली)

एक बार मैं जबरदस्त बीमार हुआ, बचने की आशा न रही थी। मैं प्रभु से प्रार्थना कर रहा था कि हे रक्षक, सर्वाधार, जो आपने मुझे इस बीमारी में से बचा दिया तो अपना जीवन धर्म प्रचार में लगाऊँगा। मेरी आन्तरिक इच्छा थी कि किसी प्रकार अब की बार बच जाऊँ तो जीवन को परमार्थ में प्रवृत्त कर दूँगा। ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली और मैं बच गया। अब मैं अपनी प्रतिज्ञानुसार जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। धर्म प्रचार मेरा कार्य है। जहाँ जाता हूँ, जिससे मिलता हूँ, हर जगह धर्म चर्चा करना मेरा काम है। मनुष्यता के सद्गुणों को, ईश्वरभक्ति, सत्य, प्रेम, दया, उदारता, परोपकार, साहस, बहादुरी, मानवता, ब्रह्मचर्य, सदाचार, पाखंड खंडन आदि मेरे प्रिय विषय हैं। इनके प्रचार में अपनी सुधि-बुधि भूल जाता हूँ और तन्मयता के साथ लगा रहता हूँ। पहले मेरे सम्बन्धियों को मेरा कार्य पसन्द न था, परन्तु पीछे मेरी दृढ़ता देखकर उन्हें भी सहमत होना पड़ा। अब वे भी विरोधी नहीं रहे हैं।

अनेक घटनाओं के आधार पर मुझे यह विश्वास हो गया है कि जीवन में धर्म ही सार है और जो व्यक्ति तुच्छ स्वार्थों से ऊँचे उठ कर धर्म में पैर बढ़ाते है, उन्हीं का जीवन धन्य है। ईश्वर की कृपा उन्हीं को प्राप्त होती है, जो धर्म मार्ग का अवलम्बन करते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles