(पं. केशवलाल शर्मा मुखरैया मुरार)
अभी पाँच वर्ष की बात है। एक उदय कुमार नामक नवयुवक नीमच के हाई स्कूल में पढ़ते थे। उनके पिता डिप्टी इन्सपेक्टर थे। उदय कुमार बुरी संगति में पड़े और जुआ, शराब आदि कुकर्मों में फँस गये। उनको बहुत समझाया, लेकिन व समझाने वाले का मार तथा धमकी से जवाब देने लगे। आखिर उनको स्कूल छोड़ना पड़ा। जब पिता जी को यह हाल मालूम हुआ तो उनने भी बहुत समझाया, जब कुछ असर न हुआ तो खर्चा देना बन्द कर दिया। खर्चा न मिलने से उदय कुमार की बदमाशियाँ और अधिक बढ़ गई। उनने आठ-दस पक्के बदमाशों का संगठन किया और चोरी, डाके पर उतर आये। एक दिन एक शराबी व्यक्ति को उन्होंने लूटा और उसके पास जो कुछ था सो ले लिया। उदय कुमार सब माल लेकर भागने को तैयार हुए। लेकिन ठीक मौके पर साथियों ने आ पकड़ा और अच्छी तरह से पीट कर बेहोश कर दिया और इनके घर ले जा कर इनके शरीर को बड़ी निर्दयता से चीरा और फिर उसमें चूना भर दिया। जो कुछ निर्दयता की कमाई थी, वह सब ले गये। अन्त में पता लगने पर वारंट के जरिये आये और 6 आदमियों को ढाई-2 साल की सजा हुई। उदय कुमार की 1 वर्ष की कैद हुई। अपील में थोड़ी ही सजा काट कर छूट गये।
जेल से आने के बाद उदयकुमार की दशा में बड़ा परिवर्तन हो गया। वे अपने पापों पर सच्चे दिल से पश्चाताप करने लगे। आखिर आत्म ताड़ना से दुखी होकर आत्महत्या के लिए तैयार हो गये। मरने से पहले वह गुरु- पूर्णिमा के दिन एक महात्मा के पास पहुँचे, वह स्थान उज्जैन से 10-11 मील दूर है। महात्मा जी के उपदेशों से प्रभावित होकर उदयकुमार वहीं रह कर तपस्या करने लगे। तब से अब तक वे मौन धारण किये हुए हैं। जंगली जीवों से ऐसा प्रेम है कि सिंहादि भयंकर जीवों पर यों ही सहज में हाथ फेरा करते हैं। वहाँ के लोगों का कहना है कि हमने महाराज को सोते नहीं देखा। जब से वहाँ गये हैं, तब से फिर बाहर कहीं नहीं गये। घर वालों ने वापिस लाने की कोशिश की पर वे नहीं आयें।
सदुपदेशों में विचित्र शक्ति है। महात्मा जी के उपदेशों ने एक बिगड़े हुए लड़के को सच्चा तपस्वी बना दिया।