कुछ सच्ची घटनायें

August 1942

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(श्री रायसाहब नारायण प्रसाद जी, हजारी बाग)

1- एक सज्जन अमीर खानदान के थे। जितने लोग उसमें थे, सब के सब कंजूस थे।

परन्तु ये बहुत दानी थे, जो कोई उनके दरवाजे पर जाता, उसका आदर-सत्कार करते थे। उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा दान किया, इनके लड़के बहुत अच्छे पदों पर है, तथा हर तरह से खुशहाल हैं और उस वंश के और लोगों की वर्तमान अवस्था बहुत साधारण है।

2- एक सज्जन अति उदार हृदय के थे। पास में तो बेचारे के धन अधिक नहीं था, किन्तु अन्तःकरण बहुत बड़ा था। मुहल्ले में किसी पर्व पर या विवाह आदि उत्सवों पर चट पहुँच जाते और बड़े आदमियों के ऐसा खर्च करके उन लोगों की सहायता करते थे। अभी हाल ऐसा है कि उनके लड़के लोग पिता की अपेक्षा अधिक खुशहाल हैं।

3- एक मित्र कहीं रेल पर जा रहे थे। संयोगवश किसी जौहरी का जवाहिरों का छोटा सा बन्डल, जो छूट गया था, इनके हाथ लग गया। यह घर ले आये। छः महीने के अन्दर पागल हो गए और अन्त काल तक पागल ही रहे और उनके लड़के लोगों को भी अवस्था अति साधारण हो गई।

4- एक सज्जन अपने माता-पिता को किसी प्रकार की सहायता नहीं करते और उनकी स्त्री अपने पति और अपने लड़के लोगों का ही ख्याल करती थी। सास-ससुर का कभी भी कुछ भी सेवा नहीं करती थी। यहाँ तक कि जब उनके पिता मरे, तो उनको श्राद्ध भी करने देना नहीं चाहती थी। अन्त में उनकी मृत्यु कम उम्र में ही दुःख के साथ हुई और सब धन नष्ट हो गया। स्त्री का देहान्त बहुत दुःख भोग कर हुआ। दस-पन्द्रह वर्ष तक गठिया की बीमारी से दुःखित रही।

5-एक पुरुष किसी अमीर आदमी के यहाँ नौकरी करते थे। जिनकी कोई सन्तान नहीं थी। अचानक उनकी मृत्यु हो गई। ये रातों-रात उनका धन चुरा कर अपने यहाँ ले आये। कुछ दिन के बाद इनकी भी मृत्यु हो गई और जब तक जीवित रहे, सुखपूर्वक नहीं रह सके। इनका लड़का अभी जीवित है और गठिया की बीमारी से पीड़ित है। चल-फिर नहीं सकता है।


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