असंख्यकों का मार्ग दर्शन (kahani)

February 1993

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रामानुजाचार्य को उनके गुरु ने एक मंत्र बताया। उसका सुविस्तृत प्रतिफल बताया। साथ ही यह भी कहा कि इसे किसी को बताना मत। अन्यथा तुझे नरक जाना पड़ेगा।

रामानुज ने मंत्र ले लिया उसका जप करने लगे। साथ ही यह भी सोचने लगे कि यदि अधिक लोगों को इसे बताया जाय तो उन सभी का कल्याण होगा।

बताने पर नरक जाने की चेतावनी भी थी। उससे अपनी ही तो हानि हो सकती थी। दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए यदि स्वयं कष्ट उठाना पड़े तो इसमें क्या हर्ज है।

उनका विचार यही हो गया। गाँव-गाँव जाकर लोगों का समूह एकत्रित करते और उस मंत्र का फल तथा विधान बताते। इस प्रकार उन्होंने असंख्यकों का मार्ग दर्शन किया। अपने नरक जाने जैसे कष्ट का कुछ भी विचार न किया।


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