अनुभवी दुकानदार (kahani)

February 1993

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दुकानदार को नौकर की सख्त जरूरत थी। उसने अपने मिलने-जुलने वालों से कह भी रखा था कि “कोई पढ़ा लिखा ईमानदार आदमी मिल जाय तो मेरी दुकान के लिए बताना, क्योंकि मैं अकेला हूँ जब कभी बाहर सामान लेने जाता हूँ या अन्य किसी काम से इधर-उधर जाता हूँ तो दुकान बंद करनी पड़ती है। ग्राहक और मौत का क्या ठिकाना? कब आये और लौट जाये?”

कुछ दिनों बाद ही एक मित्र एक युवक को साथ लेकर उस दुकान पर पहुँचा, युवक परेशानियों का मारा हुआ था। तमाम रोजगार दफ्तरों में रजिस्ट्रेशन करा रखा था पर कहीं नौकरी का नंबर ही नहीं आया। उसने सोचा सरकारी नौकरी नहीं मिलती तो न सही, जीविका चलाने के लिए जो भी साधन उपलब्ध हो जाय उसे अपना लेना चाहिए। यही सोचकर बड़ी आशा लगाये वह युवक दुकान पर आया था। उसने अपने आने का उद्देश्य बता दिया। दुकान के मालिक ने उसकी योग्यता के सम्बन्ध में पूछा तो उसने पूरा विवरण बता दिया।

“ठीक है! अभी आप अपने घर जाइये। मैं सोचकर उत्तर दूँगा और आपके घर सूचना भिजवा दूँगा।”-मालिक ने सुनकर कहा।

युवक निराश होकर अपने घर की तरफ चलता बना।

मित्र ने दुकानदार से पूछा-”भैया! आपको व्यापार के लिए एक व्यक्ति की सख्त जरूरत थी। इसीलिए मैं उस युवक को आपके पास लाया था। मेरी दृष्टि में वह युवक परिश्रमी, ईमानदार, और पढ़ा लिखा भी है पर आपने उसे टाल दिया।”

“भाई साहब! मैं आपसे क्या कहूँ? उसमें एक कमी थी। मेरे प्रश्नों का उत्तर उसने दिया तो, पर श्रीमान, महोदय जी और साहब जैसे शिष्टता सूचक शब्दों का कहीं भी प्रयोग नहीं किया। व्यापार की सारी सफलताएँ शिष्ट व्यवहार पर ही आधारित हैं। शिष्टता के अभाव में तो मेरा सारा व्यापार ही चौपट हो जायेगा।” अनुभवी दुकानदार ने अपने मित्र को समझाया।


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