आदर्शों का अभिवर्धन ही सेवा-साधन

February 1993

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भजन के अपरिमित माहात्म्य बताये गये हैं। पर कई लोग यह नहीं जानते कि भजन है क्या? क्या यह संकीर्तन मात्र है? मात्र नाम का उच्चारण व रटन ही भजन है वस्तुतः इस शब्द की व्युत्पत्ति देखने के बाद समझ में आता है कि वैसा है नहीं। भज् सेवा या धातु से भजन शब्द बना है, जिसका सीधा सादा अर्थ है-सेवा। भजन अर्थात् सेवा। भजन के अंतर्गत पूजा, कर्मकाण्ड, कीर्तन भी आते हैं पर उन सबके मूल में एक ही अर्थ है।- सेवा। सेवा किसकी, पूजा किसकी? इसका एक ही उत्तर है-आदर्शों की। आदर्शों का-श्रेष्ठताओं का समुच्चय ही-सहायता की भी आवश्यकता पड़ती है। पर किसी का स्थायी दुःख मिटाना हो तो उसे अपने पैरों पर खड़े कर स्वावलम्बी बनाना होगा। इसका एक मात्र आधार है- आदर्शों के प्रति उसे निष्ठावान बनाना। यही है सही अर्थों में सेवा।

दुखी को सुखी और सुखी को सुसंस्कृत बनाने का आत्यन्तिक आधार एक ही है-आदर्शों को आत्मसात करना। आदर्शवादिता का अभिवर्धन ही सेवासाधना का एकमात्र व सच्चा स्वरूप है। सेवा के साथ साधना शब्द जोड़कर सेवा साधना उसे इसीलिए कहा गया है कि सेवा में कहीं आत्मा श्लाघा की प्रवंचना न जुड़ जाए, उदार आत्मीयता का विस्तार होने पर जो करुणा उमंगती है और दूसरों को ऊँचा उठाने आगे बढ़ाने के लिए जो साहस प्रखर होता है, उसकी तृप्ति अपनी क्षमताएँ सत्प्रयोजनों के लिए नियोजित किये बिना नहीं होती। इस परमार्थ परायणता को ही सेवा साधना कहते हैं।


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