बंकिमचन्द्र अपने देश के मूर्धन्य विद्वान और साहित्यकार थे। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता उत्पन्न करने वाली अग्रिम भूमिका निभाती रही है।
वे अँग्रेजी के विद्वान थे तो भी भारतीय लोगों की अँग्रेजियत देखकर उन्हें दुःख होता और क्रोध आता था।
एक उच्चपदाधिकारी मित्र ने उन्हें अंग्रेजी में पत्र लिखा उसे उनने बिना पढ़े ही लौटा दिया कि अंग्रेजी-न तो आपकी मातृभाषा है न मेरी। फिर हम लोगों के अँग्रेजी में पत्र व्यवहार करने का कोई कारण मेरी समझ में नहीं आता।