तकलीफों से बचकर आदर्शों को छोड़ बैठना न बहादुरी है न बुद्धिमानी। यह तो कायरता है और है नादानी। तकलीफों में पड़े-पड़े सड़ना तो और भी बुरी बात है। उनसे जूझने में ही भलाई है।