भवितव्यता टल नहीं सकेगी

February 1993

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अभी पिछले दिनों मूर्धन्य मनीषी जॉन हाँग की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है-”दि कमिंग मिलेनियम”। यों तो यह पुस्तक पूर्णतः नोस्ट्राडोमस की भविष्यवाणी पर आधारित है, इस दृष्टि से इसमें नयापन कुछ नहीं है; पर इसे पढ़ने के उपरान्त काफी कुछ नवीनता दृष्टिगोचर होती है। तब विदित होता है कि लेखक ने इसकी वर्तमान संदर्भ में नये ढंग से नूतन व्याख्या प्रस्तुत की है। आने वाले समय एवं उसमें भारत की भूमिका की दृष्टि से यह पुस्तक विशेष उल्लेखनीय है।

वे लिखते हैं कि इस सदी का अन्तिम एवं आगामी सदी का दशक सम्पूर्ण विश्व के लिए संकटों एवं चुनौतियों से भरे होंगे। भारत के लिए यह अवधि अत्यन्त कष्टदायक प्रसव-वेदना जैसी साबित होगी, जिसमें उसे आन्तरिक क्लेशों एवं बाह्य दुरभिसंधियों की दोहरी मार झेलनी पड़नी; पर इसी बीच एक ऐसी नवीन चेतना का प्रादुर्भाव वहाँ से होगा जिससे उसके समस्त भीतरी कलह देखते-देखते समाप्त हो जायेंगे। इतना ही नहीं, उस नवजात चेतना का विस्तार अबोध शिशु से बालक-बालक से वयस्क और वयस्क से प्रौढ़ की तरह होता चलेगा और अन्ततः वह एक जनक्रान्ति का रूप लेकर सम्पूर्ण संसार में विस्तीर्ण हो जायेगा। इसके बाद भारत पूरे विश्व का मार्गदर्शक बन जायेगा एवं हर प्रकार से हर क्षेत्र में वह उसका मार्गदर्शन करेगा। फिर विश्व भौतिकवादी न रह कर अध्यात्मवादी बन जायेगा। वे लिखते हैं कि इसका यह तात्पर्य नहीं कि भौतिकवाद का समूल नाष हो जायेगा। इसका अस्तित्व तब भी बना रहेगा; किन्तु दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बन जाने के कारण लोग उसका वही पहलू स्वीकारेंगे, जो कल्याणकारी हो। जिससे अशांति, वर्ग-विग्रह और असंतोष पनपता हो, अकर्मण्यता और आलस्य उपजता हो, उसका जनजीवन में दूर-दूर तक कोई स्थान न होगा। सब सक्रिय रह कर शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे।

वे कहते हैं कि श्रेष्ठता की दृष्टि से आने वाला समय हर प्रकार से अभूतपूर्व होगा, इतना अभूतपूर्व और उत्कृष्ट, जिसे “न भूतो न भविष्यति” जैसा कुछ कहा जा सके। उन्होंने इसका नाम “दि एज ऑफ विज्डम” दिया है। उनका कहना है कि नोस्ट्राडेमस की भविष्यवाणी की निम्नस्तरीय व्याख्या ने ही उस सत्य को अब तक छिपाये रखा है, जो अपने अन्दर अनेकानेक तथ्यों को सँजोये हुए है, एवं जिसके अस्तित्व में आने का ठीक यही समय है।

“दि एज ऑफ विज्डम” की व्याख्या करते हुए वे लिखते हैं कि तब तक लोग सामान्य स्तर की बुद्धि से काम न लेकर विवेक एवं प्रज्ञा जैसी उच्च भूमिका सम्पन्न बुद्धि का प्रयोग करते पाये जायेंगे; क्योंकि उस समय इस स्तर की बुद्धि सर्वसुलभ हो जायेगी, अतः जो भी निर्णय-निर्धारण किया जायेगा, वह इस उच्चस्तरीय बुद्धि के कारण इतना सटीक और सारगर्भित होगा कि सभी उसे मानने के लिए बाध्य होंगे, कारण कि इसका दूसरा श्रेष्ठ विकल्प कोई होगा ही नहीं। इस प्रकार किसी भी समस्या का एक ऐसा सर्व-सम्मत समाधान निकाला जायेगा, जो सर्वमान्य होगा। इससे आज जैसी विवाद-विग्रह की स्थिति से बचा जा सकेगा और सभी परस्पर भ्रातृ-भावना से हिल-मिल कर रहेंगे। तब आज जितने न मत-मतान्तर दिखाई पड़ेंगे, न पथ-पन्थ। व्यावहारिक जीवन में अध्यात्म ही एकमात्र धर्म के रूप में जीवित रह जायेगा। जातिवाद को नये परिवेश में नये ढंग से परिभाषित किया जायेगा। यह एक ऐसी अभिनव व्याख्या होगी, जिसमें आज की अगणित जातियों का कोई महत्व या स्थान न रह जायेगा। सम्पूर्ण जातियाँ एक महासागर में समा जायेंगी और फिर उससे एक एवं एकमात्र जाति-मनुष्य जाति का उदय होगा, जो लम्बे काल तक अपने उस स्वरूप को अक्षुण्ण बनाये रखेंगी।

पदार्थ विज्ञान के अस्तित्व के बारे में वे लिखते हैं कि यह अपनी सत्ता बचा ले जायेगा; पर बुद्धि में विवेकशीलता के विकास के कारण उसका वह विनाशकारी स्वरूप न रह जायेगा, जो इन दिनों हम देख रहे हैं। इसका श्रेष्ठतम पक्ष ही आने वाले समय में पूजित होगा और वह ऐसे अनुसंधानों में निरत देखा जायेगा, जो समय, समाज व सम्पूर्ण मानव जाति को एक ऐसे चरम-बिन्दु पर पहुँचा दे, जिसके आगे पदार्थपरक और उन्नति कदाचित् शेष ही न रह जाय; किन्तु यह सब कुछ होगा कल्याणकारी ही। जिससे समाज का अमंगल और अनिष्ट होता हो, वैसे सरंजाम जुटाने बंद कर देगा। मानवी बुद्धिवाद का एक पहलू हुआ। वे लिखते हैं कि हर पहलू का एक दूसरा उत्कृष्ट और उदात्त पक्ष भी होता है। अगले दिनों विज्ञान इसी रूप में प्रतिष्ठित होगा। उदाहरण के माध्यम से समझाते हुए वे कहते हैं कि संगीत इन दिनों व्यक्ति को अधोगामी बनाने में संलग्न है-यह इसका एक आयाम है, पर इसका दूसरा आयाम इतना सशक्त व शक्तिशाली है, जो व्यक्ति को उत्कृष्ट की ऊँचाइयों पर पहुँचा दे। भविष्य में विज्ञान का यही आयाम अस्तित्व में रहेगा। दूसरा विनाशकारी पक्ष तूफान में फँसे तिनके की तरह नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा।

“दि एज ऑफ विज्डम” की अवधि के संबंध में लेखक लिखते हैं कि नोस्ट्राडेमस के अनुसार यह समय हजार वर्ष से भी ज्यादा होगा, जिसमें पृथ्वी पर वातावरण स्वर्गयुगी बना रहेगा। यह अवधि पीछे के सभी स्वर्णयुगों से लम्बी होगी और श्रेष्ठ इतनी, कि जिसे आने वाली पीढ़ियों चिरकाल तक याद करती रहें। नोस्ट्राडेमस की भविष्यवाणियों का गहन अध्ययन करने के पश्चात् ग्रन्थकार लिखते हैं कि संभवत; यह स्वर्णयुग मानवी इतिहास का अन्तिम स्वर्णयुग होगा। इसके उपरान्त शायद इसकी पुनरावृत्ति संभव नहीं और यदि हुई भी तो सभ्यता के नये सिरे से शुरुआत के बाद ही शक्य हो सकेगी। उनका कहना है कि उत्थान-पतन विकासक्रम की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है; पर इस बार का उत्थान सम्पूर्ण मानव जाति को एक ऐसी उच्च भूमिका में पहुँचा देगा कि एक-एक व्यक्ति पूर्णत्व का अनुभव कर सकेगा।

नोस्ट्राडेमस-भविष्यवाणी के विभिन्न व्याख्याकारों को पढ़ने के बाद उन्होंने निष्कर्ष निकाला है, कि इसमें स्थान-स्थान पर कई व्याख्याकारों ने बड़े बेतुके अर्थ निकाले है। इनमें से कुछ ने सामयिक स्वार्थ-सिद्धि और अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करने के लिए जानबूझकर ऐसा करवाया, जबकि कइयों से इस प्रकार की गलती साँकेतिक गूढ़ अर्थ को भली-भाँति न समझ पाने के कारण हुई। उनके अनुसार इस तरह की गलत व्याख्या की शुरुआत तब हुई, जब द्वितीय विश्वयुद्ध ज्योतिषियों से नोस्ट्राडेमस-भविष्यवाणी की व्याख्या अपने पक्ष में करवा ली। बस, तभी से उस भविष्यवाणी का स्वार्थपूर्ण प्रयोग आरंभ हुआ और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाने लगा। वे बड़े खेदपूर्ण स्वर में कहते हैं कि यह उस द्रष्टा पुरुष के साथ भारी अन्याय है।

भविष्यवाणी चाहे कुछ भी हो, भवितव्यता को घटित होने से कोई रोक नहीं सकता। लगभग इसी प्रकार के उद्गार जॉन हाँग ने पुस्तक के अन्त में प्रकट करते हुए कहा है कि इससे कुछ बनने-बिगड़ने वाला है नहीं कि कोई किसी के कथन को विकृत रूप में प्रस्तुत करे या सही रूप में। इससे जो नुकसान होगा, वह मात्र इतना ही है कि जिस सत्य को किसी मनीषी ने हजारों वर्ष पूर्व उद्घाटित कर दिया था, बनावटी मुलम्मा चढ़ा देने के कारण लोग उससे अनभिज्ञ बने रहेंगे; पर इतने मात्र से उस सत्य को साकार रूप में अवतरित होने से रोका तो नहीं जा सकता। जो विधान बन चुका, उसे तो घटित होना ही है, फिर चाहे लोग उसे सही-गलत रूप में प्रस्तुत करें, विश्वास करें या न करं-इससे उसकी सुनिश्चितता में कमी तो आ नहीं सकती और न ऐसा ही हो सकता है कि वह अटल सत्य टाल जाय। आने वाला समय ऐसा ही उज्ज्वल है-हमें इसका दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।


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