असमंजस दूर हो गया (kahani)

February 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आत्म-ज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर जब श्रुतधर वापस लौटे और हर वस्तु के बाहरी रूप का निरीक्षण परीक्षण आरंभ किया तो सर्वत्र गंदगी दिखाई दी और यहाँ तक कि अपना शरीर भी मल मूत्र का पिटारा भर दीखने लगा। संसार की भ्रान्तियोँ और दुराग्रह उन्हें बहुत हैरान करने लगे।

उद्विग्न होकर श्रतुधर पुनः गुरु के पास पहुँचे और अपने चिन्तन में उत्पन्न हुए असंतोष का विवरण सुनाया।

आचार्य जबाल ने कहा अपने दृष्टिकोण में पवित्रता का समावेश करो। उस बदली हुई दृष्टि से सभी पदार्थों और प्राणियों के भीतर पवित्रता का अंश सामने आवेगा और तुम संतोष की दुनिया में माँस ले सकोगे।

हल मिल गया और उनका असंतोष -असमंजस दूर हो गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles