शिष्यों का संकल्प (kavita)

February 1993

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क्रान्ति का अध्याय लिखकर, दे गये है आप जो, हम कदम उससे कभी, पीछे हटायेंगे नहीं।

याद तो हरदम सताण्गी, गुरुवर आककी, कायरों की भाँति हम, आँसू बहायेंगे नहीं।

आप शंकर बन जहर, पीते रहे संसार का, पर न व्रत छोड़ा कभी भी, आपने उपकार का।

दर्द इतना भर लिया था, जिन्दगी में आपने, ध्यान तक आया नहीं, क्षण भर कभी अधिकार का॥

किस तरह हम आप से, फिर कामना सुख की करें, बढ़ गये जिस राह पग, पीछे हटायेंगे नहीं।

इन्द्र-सा ऐश्वर्य पाकर भी, सदा वामन रहे, आह तक निकली न मुख से, घात है कितने सहे।

घूँट जीवन भर प्रभो, अपमान का तुमने पिया, भूल पाते है न कितना, दर्द दनुजों ने दिया॥

जानते हैं देव हम, उनको बहुत नजदीक से, किन्तु हम उनसे कभी, बदला चुकायेंगे नहीं।

दाँव पर बाजी लगी है, जीत हो या हार हो, प्रश्न यह उठता नहीं, अब कौन-सा आधार हो।

हम जहाँ भी है, हमारी हैसियत छोटी बड़ी, आपके चरणार-विन्दों, का वहीं उपहार हो॥

पाँव में छाले पड़ें या, आग पर चलना पड़े, किन्तु किंचित भी कदम यह डगमगायेंगे नहीं॥

आप हैं गुरु सूर्य-सम, पूजन प्रभो कैसे करें? लक्ष्य में आँखें लगी जो, वे सलिल कैसे झरें?

आप ओझल हो गये, तो क्या रहा संसार में, अर्चना के थाल में, श्रद्धा सुमन कैसे धरें?

आप जो दीपक जलाकर, रख गये हैं, सामने, लें, प्रभु विश्वास हम, उसको बुझायेंगे नहीं॥

क्रान्ति का अध्याय लिखकर, दे गये है आप जो, हम कदम उससे कभी, पीछे हटायेंगें नहीं,

-बलराम सिंह परिहारे


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