एक मुर्गा ऊँचे पेड़ पर बैठा था। एक चालाक
लोमड़ी ने उसे नीचे उतार कर दबोच लेने की तरकीब सोची।
लोमड़ी ने मुर्गे को पुकारा और कहा-”तुम जानवर को परसों वाली पंचायत की जानकारी नहीं है क्या? फैसला हो चुका है कि इस जंगल का कोई जानवर दूसरे को सताएगा नहीं। सभी मिलजुल कर रहेंगे। सो तुम नीचे आ जाओ। खेल-मेल से समय काटेंगे।”
मुर्गा असलियत ताड़ तो गया पर कुछ बोला नहीं-चुपचाप जहाँ का तहाँ बैठा रहा।
इतने में दूसरी ओर से शिकारी कुत्ते दौड़ते हुए आए लोमड़ी जान बचाने के लिए दूसरी ओर भागी।
मुर्गे ने लोमड़ी को पुकारा और पंचायत की बात याद दिलाते हुए कुत्तों से न डरने का परामर्श दिया।
लोमड़ी रुकी नहीं। भागते हुए उसने इतना ही कहा-”शायद तुम्हारी ही तरह इन कुत्तों ने भी पंचायत का फैसला न सुना हो।”