उपलब्धियों का सदुपयोग “श्रेष्ठतम समझदारी”

February 1992

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इस संसार में पाना कठिन नहीं है। पाने के बाद उपलब्धियों का सदुपयोग करना किसी-किसी को ही आता है। सम्पदा व साधन अनायास भी किसी को मिल सकते हैं व कमाए भी जा सकते हैं किन्तु उसका सदुपयोग करने के लिए अत्यन्त दूरदर्शी विवेकशीलता व संतुलित बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है। श्रेष्ठ व्यक्तियों की समीपता पा लेना सहज सरल है किन्तु उससे अधिक कठिन है उस सान्निध्य का सदुपयोग करके समुचित लाभ उठा पाना।

मनुष्य ईश्वर का राजकुमार है। उसमें बीज रूप में वे सभी विशेषताएँ व संभावनाएँ विद्यमान हैं जो उसे श्रेष्ठतम विकास की ओर ले जाती हैं। प्रयत्न करने पर उन्हें जगाया व बढ़ाया जा सकता है। मनस्वी, लगनशील व्यक्ति इच्छित दिशा में सफलता प्राप्त करने की क्षमताएँ उत्पन्न करता है और फिर उनका सदुपयोग करके मनचाही सफलताएँ हस्तगत करता है।

जो नहीं है, उसे पाने को तो सभी लालायित देखे जाते हैं, पर विरले ही ऐसे होते हैं जो अपने आज की उपलब्धियों और क्षमताओं की गरिमा का मूल्याँकन कर सकें, उनके सदुपयोग की व्यवस्थित योजना बना सकें। जो प्राप्त है, वह इतना अधिक है कि उसका सही व संतुलित उपयोग करके प्रगतिपथ पर बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता है। अधिक पाने के लिए प्रयास तो किया जाना चाहिए पर इससे भी अधिक आवश्यक यह है कि जो उपलब्ध है, उसका श्रेष्ठतम सदुपयोग करने के लिए योजनाबद्ध-रूप से आगे बढ़ा जाय। जो ऐसा कर सकें, सफलता-श्री-समृद्धि उनके चरणों को चूमेगी, यह इस सृष्टि का नियम व स्रष्टा का आश्वासन है।


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