गाँधी जी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले उच्चकोटि के विद्वान थे, साथ ही असाधारण प्रतिभाशाली थे । इसके लिए उन्हें अनेक गैर सरकारी पदों पर काम करने के लिए अनेकों आमन्त्रण सदा मिलते रहते थे, पर उनने अपना जीवन समाज को ऊँचा उठाने वाले कार्यों के लिए उत्सर्ग करना उचित समझा । इस मार्ग पर चलने वाले को अपरिग्रही की आदर्शवादिता अपनानी चाहिए । इस मान्यता के अनुसार उन्होंने 35/- मासिक में परिवार निर्वाह चलाते रहने का व्रत लिया और उसे आजीवन निबाहा । राष्ट्रीय कार्यों के लिए उनके द्वारा लाखों की धनराशि एकत्रित की गई पर उनने कभी अपना निजी खर्च बढ़ाने और अधिक लेने की बात न सोची , न स्वीकारी । चरित्र निर्माण के आधार पर ही वे गाँधी जैसे शिष्य विनिर्मित कर सकने में समर्थ हो सके ।