दार्शनिक सुकरात की पत्नी बड़े कर्कश स्वभाव की थी। घर पर विचार विमर्श के लिए आने वालों की भीड़ लगी रहती थी । यह उन्हें बुरा लगता था। स्वागत तो दूर अतिथियों का समय-समय पर अपमान किया करती थीं।
एक दिन सत्संग बड़ा था उनके घरेलू काम में हर्ज हो रहा था। बौखला गई और छत पर चढ़कर आँगन में बैठी आगन्तुकों को गालियाँ देने लगी और चले जाने का आदेश देने लगी सुकरात के इशारे पर वे लोग बैठे रहे सत्संग चलता रहा।
इस पर पत्नी ने बर्तन माँजने गंदा पानी उन लोगों पर फेंकना शुरू किया और गाली देना भी चालू रखा।
सुकरात ने अपना संतुलन नहीं खोया। सिर्फ हँसते हुए इतना ही कहा देखा आप लोगों ने बादल गरज भी रहे हैं और बरसात भी शुरू कर दी। दूसरे लोग भी हँस पड़े। झगड़े की बात विनोद में बदल गई