सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल को जिस दिन फाँसी लगनी थी उस दिन सवेरे जल्दी उठकर वे व्यायाम कर रहे थे । जेल वार्डन ने पूछा । आज तो आपकी एक घण्टे बाद फाँसी लगनी है फिर व्यायाम से क्या लाभ ? उनने उत्तर दिया । “जीवन आदर्शों और नियमों में बँधा हुआ है । जब तक शरीर में साँस चल रही है तब तक नियमों में व्यवधान आने देना कहाँ तक उचित है ? मैं अपना धर्म निभा रहा हूँ, आप अपना कर्तव्य पूरा कीजिए ।”
प्रख्यात मुंशी प्रेमचन्द्र को उ. प्र. गवर्नर ने संदेश भेजा कि वे उन्हें “रायसाहय “ का खिताब देना चाहते हैं और कुछ उपहार भी ।
मुंशी जी इसका अभिप्राय समझ गये कि उन्हें सरकार के पक्ष में लिखने के लिए रिश्वत की पेशकश की जा रही है ।
उन्हें सभ्य शब्दों में इंकार करते हुए उत्तर दिया कि “कितने ही मुझसे अधिक योग्य अपनी वरिष्ठता के कारण इस उपाधि के अधिकारी है तो मेरे जैसे नाचीज के लिए ऐसा सम्मान स्वीकार करने पर मैं धृष्ट कहा जाऊँगा ।” तात्पर्य स्पष्ट इंकार था । वे अपनी विचार स्वतंत्रता को किसी मूल्य पर बेचना नहीं चाहते थे ।