सामूहिक महामरण को उद्यत हम सब

February 1992

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जब ‘आत्महत्या’ शब्द लिखा या बोला जाता है, तो उसका अभिप्राय होता है मनुष्य द्वारा किया गया आत्मघात। पिछले दिनों तो इस संबंध में समझा यही जाता रहा था कि यह विशुद्ध मानवी प्रवृत्ति है, और सिर्फ मनुष्यों में ही पायी जाती है, किन्तु अब ज्ञात हुआ है कि यह प्रवृत्ति नभचरों और जलचरों में भी समान रूप से पायी जाती है, वह भी सामूहिक, अर्थात् जब उन्हें आत्महत्या करनी होती है, तो वह मनुष्य की तरह सर्वथा एकाकी रहकर नहीं करते, वरन् सम्पूर्ण जाती ही मृत्यु का वरण करना पसन्द करती है।

जटिंडा (आसाम) के संबंध में सभी जानते हैं कि उस क्षेत्र में निवास करने वाले एक विशेष जाति के पक्षी रात के समय बिजली के प्रकाश स्तम्भों और जलती मशालों में एक विशिष्ट मौसम में स्वयं को झोंक-झोंक कर बड़े पैमाने पर प्राण त्यागते देखे गये हैं। यह गुत्थी अभी सुलझ भी नहीं पायी है कि दूसरा ऐसा ही प्रसंग जलचरों में देखने में आया है। हुआ यों कि अमेरिकी समुद्रों में ‘टाइल्स’ नामक एक विशेष प्रजाति की मछलियाँ प्रचुर संख्या में पायी जाती थीं, किन्तु अब से कुछ समय पूर्व वे न जाने क्यों सामूहिक आत्महत्या पर उतारू हो गई और देखते ही देखते पूरा समुद्र इनसे पट गया। समुद्र तटों पर निवास करने वाले मछुआरों और जलयानों में यात्रा करने वाले प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि ‘टाइल्स’ जाति की मछलियों ने इतनी बड़ी संख्या में आत्मघात किया था कि सम्पूर्ण जलराशि पूरी तरह ढक गई थी और जल-सतह का स्थान मृत मछलियों ने ले लिया था। इस प्रकरण में एक विलक्षण बात यह देखने में आयी कि उक्त प्रजाति को छोड़कर और किसी जाति की मछलियाँ मृत नहीं पायी गई, यद्यपि उनमें विभिन्न प्रजातियों की ढेरों मछलियाँ निवास करती थी। विशेषज्ञों का कहना था कि मृत मछलियों की संख्या गिन पाना तक संभव नहीं था।

इस घटना के कुछ दिन पश्चात् आस्ट्रेलिया के समुद्र तटीय सिडनी शहर के दक्षिण में इवान्स हेड से इलका तक के 190 मील के दायरे में मामला इसके विपरीत ही नजर आया। उपरोक्त घटना में मछलियों ने पानी में रह कर प्राण त्यागना उचित समझा था, जबकि यहाँ करोड़ों की संख्या में वे जल से उछल-उछल कर बाहर निकलतीं और गर्म बालू में तड़पती हुई प्राणोत्सर्ग कर देतीं । कई बार तटवर्ती लोग यह दृश्य देख कर उन्हें बार-बार समुद्री जल में डाल देते, ताकि उनके प्राण बच सकें, पर पुनः-पुनः वे जल से बाहर निकल कर छटपटाती हुई अपनी जीवन लीला समाप्त कर देतीं। अनेक मत्स्य विशेषज्ञों ने जब यह दृश्य देखा तो उनके मन में विचार आया कि संभवतः समुद्री जल में किसी प्रकार का विष फैल गया है, जिससे बचने के लिए ये मछलियाँ जल से बाहर निकल आती हैं । जैसे ही यह बात दिमाग में कौंधी अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर मछलियों को वहाँ से हटा कर निकटवर्ती जलाशयों में छोड़ा किन्तु उनके आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि यहाँ भी वे जल से बाहर निकल कर तड़प-तड़प कर जान देने लगीं। उल्लेखनीय बात यह थी कि इस बात भी एक विशेष प्रजाति की मछलियों में ही यह विलक्षण व्यवहार देखा गया। अन्य अनेक समुद्री जीवों एवं दूसरी जाति की मछलियों में इस तरह का कोई असामान्य लक्षण नहीं दिखाई पड़ा।

स्थानीय मत्स्य सहकारी बोर्ड के अध्यक्ष लेस्टर क्लीब

ने वहाँ के समुद्री जल और मृत मछलियों को अध्ययन-परीक्षण हेतु कई विश्वविद्यालयों में भेजा, पर उनमें कोई असामान्यता नहीं देखी गई। उनका कहना था कि चालीस वर्षों के उनके इस व्यवसाय में यह अपने प्रकार की पहली घटना थी। उससे पूर्व आस्ट्रेलिया में उनने ऐसा दृश्य न कभी देखा था, न सुना था।

मनुष्य भी इन दिनों महामरण के ऐसे ही सरंजाम जुटाते देखा जा रहा है। उसके सामने अब दो ही विकल्प हैं-विकास और विनाश के। यदि वह विकास के रास्ते का चयन करता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि सम्पूर्ण मनुष्य जाति सुरक्षित बच जायेगी और आने वाला समय निश्चय ही उसके लिए उज्ज्वल भविष्य की संरचना करेगा, किन्तु इसकी उपेक्षा कर यदि वह विनाश का मार्ग अपनाता है, तो इसमें आश्चर्य नहीं कि अगले दिनों हमें जलचरों, नभचरों की तरह सामूहिक मरण की तैयारी करनी पड़े।


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