दोष दृष्टि सत्प्रसंगों में से भी अपने अनुरूप दुष्प्रवृत्ति ढूँढ़ निकालती है । साँप दूध पीकर भी उसका विष बनाता है ।
एक उच्छृंखल युवक युवती मनोरंजन के लिए भगवत् कथा सुनने के लिए जाने लगे । युवक ने कृष्ण के अनेक रानियाँ, पटरानियाँ और 16 हजार उपरानियों की बात सुनी तो कहा-पत्नियों अनेक पत्नियों के संपर्क में कोई दोष नहीं है । यदि होता तो भगवान कृष्ण वैसा क्यों करते ?
युवती भी मनचली थी । उसके अपने मत की पुष्टि करने वाले कई प्रसंग मिल गये । कुन्ती ने कुमारी स्थिति में बालक जन्म दिया और द्रौपदी के पाँच पति थे । इसमें बुराई रही होती तो ऐसे महामानवों ने उस आचरण को क्यों अपनाया होता ?
अच्छे प्रसंग कठिन थे और नैतिक प्रसंग न तो उनने कथा में सुने और न उन्हें सुनने समझने का प्रयत्न किया , दोष दृष्टि जो छाई थी ।