आया देखो ! प्रिय वसंत (Kavita)

February 1992

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बसंती बहार बिखराता आया देखो प्रिय वसंत। प्रगति पर्व बन जिसने अनुपम रंग बिखेरे दिग-दिगंत ........आया।

कुम्हलाई मानवता इस दिन पा बहार फिर डोल उठी, ऋषि संस्कृति भी मौन तोड़ कर सृजन स्वरों में बोल उठी,

महाप्राण को इसी दिवस तो दिव्य प्राण अनुदान मिला, विश्वधरा को महकाने ज्यों ब्रह्म कमल ही स्वयं खिला,

हुई दिशाएँ सुरभित सारी पाकर इसकी मधु सुगंध, आया वह अनुपम वसंत ................................।

ब्रह्मकमल के अस्सी पुष्पों से महकी यह फुलवारी, सृजन सूर्य के आगे मानो काँप उठी खुद अँधियारी,

सविता साधक तपा अनवरत जीवन दीप अखंड जला, वसुंधरा लहलहा उठे इसलिए बीज बन स्वयं गला,

फिर से जग उपवन पा चहका नंदनवन की मधुर गंध, आया वह प्यारा वसंत ........................................।

आज हमारी है बारी संकल्प अटल यह लेने की, फैले ही थे हाथ आज तक वेला है अब देने की,

देखे जो तुमने सपने उनको साकार बनायें हम, युग के महायज्ञ में पावन आहुति बन जल जायें हम,

करें पूर्ण दिखला दें हम भी जन्म-जन्म के सब अनुबंध, लाएँ हम ऐसा वसंत...........................................।

केसरिया बाने में रंग कर जीवन हो यह बलिदानी, ले आयें मधुमास पुनः कर सतयुग की हम अगवानी,

झूम उठें आदर्श और अंकुर फूटे सद्भावों के, नाम मिटा दें इस धरती से पतझड़ और अभावों के,

छा जाये चहुँ ओर बसंती छटा सुहानी बन अनंत,

आएगा ऐसा वसंत ......................................।

“सुरभि”


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