ईरान का बादशाह (Kahani)

February 1992

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ईरान का बादशाह कैकौस था । उसने बहुत से युद्ध लड़े और जीते । वह पराजित देशों को लूटकर अत्यन्त धनी बन गया । बाद में उसने अलबर्ज नामक पहाड़ी पर दो नए महल बनवाएँ । वहाँ इतने हीरे-जवाहरात भरे थे कि रात्रि को भी दिन की तरह प्रकाश रहता था ।

कैकौस गर्व से भर गया कि वह सम्पूर्ण धरती में सबसे बड़ा बादशाह है ।

जब इबलीस (शैतान )ने बादशाह के हृदय में भरे अहंकार को देखा तो उसे अपने जाल में फँसाने का निश्चय कर लिया । उसने एक जिन्न को नौकर के वेश में बादशाह को एक खूबसूरत गुलदस्ता भेंट करने के लिए भेजा ।

नौकर ने कदमबोसी करके बादशाह से कहा । “शाह ए आलम ! संसार भर में आप से बड़ा कोई बादशाह नहीं है, किन्तु अब भी एक ऐसी दुनिया है जहाँ आपका हुक्म नहीं चलता वह है , सूरज चाँद सितारों की दुनिया । हे मालिक !आप चिड़ियों के पीछे उड़ें और आकाश में जा पहुँचे ।”

यह तो आपके वजीर और आदिम बता सकेंगे ।

बादशाह ने सब विद्वानों को बुलाया और उनसे आसमान में उड़ने का उपाय पूछा । उन्होंने एक योजना बनाई ।

उन सबने गिद्ध के चार बच्चे पकड़वाए और उन्हें अच्छा खिला कर खूब मजबूत बनाया

अब एक लकड़ी का चौखटा बनाया गया चारों खूँटे पर एक-एक गिद्ध को बाँध दिया गया । इस चौखट, पर बादशाह का सिंहासन रखा गया । शराब की सुराही के साथ बादशाह उस पर आ विराजे । गिद्ध माँस को पाने के उपाय में ऊपर उड़ें । लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । जब उन्होंने देखा कि उनके शहंशाह सचमुच ऊपर उड़ रहे है । ऊपर और ऊपर माँस के टुकड़े , गिद्ध और बादशाह ऊपर उठते ही जा रहे थे । आखिर गिद्ध थक गए उन्होंने पंख मारना छोड़ दिया और बादशाह अपनी सुराही सिंहासन समेत चीन की पहाड़ियों में जा गिरे ।

अहंकारी का अन्त ऐसा ही होता है । इस सृष्टि में बड़बोलों का पराभव आँख झपकते होता देखा जाता है । तब भी हम अपनी छोटी सी दुनिया के वैभव पर इतराते देखे जाते हैं ।


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