साथ जाते हैं सत्कर्म- जुटाते हैं हम दुष्कर्म

February 1992

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मनुष्य भगवान का ज्येष्ठ राजकुमार है और इस सृष्टि का मुकुटमणि भी । भगवान ने अपनी सृष्टि में उसकी संरचना सिर्फ इसलिए नहीं की, कि वह भी अन्य जीवों की तरह शिश्नोदरपरायण बना रहे और मानव जीवन के इस बहुमूल्य अनुदान को इसी तरह बरबाद कर दे, वरन् उसने उससे यह भी अपेक्षा रखी है कि वह स्वयं को अन्य प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ , वरिष्ठ व बुद्धिमान-विवेकवान सिद्ध करें, किन्तु विडम्बना यह है कि वह भगवद्-इच्छा और अपने दायित्वों को भुला कर उदरपूर्ति को ही अपना एक मात्र कर्तव्य मान बैठा है और इसी निमित्त तरह-तरह के कौतुक रचता रहता है । इन दिनों ऐसी ही घटनाएँ आये दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं ।

मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया ) निवासी टील्फ डेविड हेलपर इन्हीं कौतुकियों में से एक हैं । हुआ यों की वह एक बेरोजगार युवक था । उसे पैसे की नितान्त आवश्यकता थी, किन्तु किसी स्रोत से किसी भी प्रकार धन कमाने में वह सर्वथा विफल रहा । इससे वह काफी चिन्तित और परेशान हुआ। एक दिन जब वह सो रहा था , तो एक स्वप्न देखा कि वह जमीन पर बिना किसी वस्त्र के लेटा हुआ है और उसके शरीर पर एवं इर्द-गिर्द भाँति-भाँति के कृमि-कीटक रेंग रहे हैं । इनसे वह तनिक भी भयभीत नहीं हो रहा है । जब वह उठा, तो उसके मन-मस्तक पर वह दृश्य ज्यों-का त्यों बना हुआ था । उसने उसी समय यह निश्चय किया , कि वह जीव-जन्तुओं के माध्यम से नये-नये करतब दिखा कर लोगों को चमत्कृत करेगा और धन कमाएगा । बस, फिर क्या था, उसने अपने निश्चय को व्यावहारिक रूप देना आरंभ किया । वह तरह-तरह के जीव-जन्तु पाल कर उन्हें प्रशिक्षित करने लगा एवं उनसे भाँति-भाँति के कौतुक दिखाकर पैसा कमाना आरंभ किया । वह जहाँ भी गया उसे ढेर सारे पैसे मिले । उसका सारा जीवन इसी में खप गया ।

धन कमाना बुरा नहीं है, इसे ही सब कुछ मान लिया जाय पर जहाँ ठगी और प्रवंचना जैसी युक्तियों का सहारा लिया जाय वहाँ वह निश्चय ही हेय और निन्दनीय है । यह बात दूसरी है कि बाद में इसे अनुचित मानकर राशि लौटा दी गई है ।

इंग्लैण्ड के विलसन बन्धुओं ने अपनी दीनता मिटाने के लिए ऐसे ही उपाय का अवलम्बन लिया । विभिन्न प्रकार के कार्यों में जब उन्हें सफलता नहीं मिली , तो वे इंग्लैण्ड से जमैका (वेस्टइंडीज) पहुँचे, वहाँ उन्होंने कोई काम ढूँढ़ना चाहा पर विफल रहे । कोई धन्धा आरंभ करने के लिए पैसों की आवश्यकता थी । पर पैसे कहाँ से आयें ? उनके पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं भी । पेट भरने के लिए ही उन्हें जहाँ-तहाँ की खाक छाननी पड़ती । अन्ततः उन्होंने तत्कालीन दास-व्यापार-से लाभ उठाने का निश्चय किया । इसके लिए बड़े भाई जिम ने छोटे भाई जेड को ‘दास’ के रूप में प्रयुक्त किया । उसके बालों का मुण्डन कर काले रंग से पूरी तरह रंग कर उसे एक काले अफ्रीकी का रूप दे दिया और बाज़ार में बेच दिया । इसमें उसे एक बड़ी राशि प्राप्त हुई कुछ दिन मालिक के पास रहने के उपरान्त पूर्व निर्धारणानुसार जेड चकमा देकर भाग आया । इसके बाद उसने अपना रंग छुड़ाया और फिर से एक काले अफ्रीकी से बदल कर गोरा अँगरेज बन गया । इस राशि से दोनों भाइयों ने मिल कर व्यापार आरंभ किया, जिसमें उन्हें बड़ा मुनाफ़ा मिला । जब वे वापस इंग्लैण्ड लौटने लगे, तो उनके पास 32 हजार पौण्ड थे, पर जमैका से वापस जाने से पूर्व उन्होंने जिस व्यापारी को ठगा था, उसे वह सम्पूर्ण राशि लौटा दी ।

किसी ने ठीक ही कहा है-बँधी मुट्ठी लाख की , खुली तो खाक की “। मनुष्य जन्म निश्चय ही बँधी मुट्ठी की स्थिति में लेता है, किन्तु जब इस नश्वर संसार से कूच करता है, तो उसकी मुट्ठी सर्वथा खुली रहती है । धन-सम्पत्ति सब कुछ यहीं रह जाते हैं । उसके साथ जाता है, तो एकमेव उसका कर्म । फिर शुभाशुभ कर्म के हिसाब से उसे दूसरे जीवन में उसका फल शुभाशुभ कर्म के हिसाब से उसे दूसरे जीवन में उसका फल भोगना पड़ता है । अतः विवेकशील उसे ही कहा जा सकता है, जो धन जोड़ने के चक्कर में अपना सम्पूर्ण जीवन बरबाद करने की तुलना में समाज-सेवा संबंधी कोई ऐसा कार्य करे , जो न सिर्फ उसे धन्य बनाकर उसका लोक और परलोक सुधार दे , वरन् उस परमपिता को भी गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करे, जिसकी वह सन्तान है ।


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