एक दार्शनिक बगीचे में सो गये। सोते समय चारों ओर फूलों पर तितलियाँ उड़ती नजर आ रही थी। सपने में भी पूरे समय वे यह अनुभव करते रहे कि स्वयं ही तितली हो गये है और फूलों पर बैठने का रस ले रहे थे। वे बड़े प्रसन्न थे।
देर तक सोने के बाद जब वे उठे तो भौंचक्के थे। साथी दार्शनिक ने इस प्रकार हैरान होने का कारण पूछा तो उनने कहा कि समझ में नहीं आता कि मैं आदमी था और तितली का स्वप्न देख रहा था अब भी मैं तितली हूँ आदमी बन जाने का सपना देख रहा हूँ।
दूसरे दार्शनिक ने समाधान किया कि दोनों ही परिस्थितियों में अपने-अपने ढंग में दोनों ही बातें सही मानी जा सकती है।