गाँव में बूढ़ा बैठा-बैठा अपनी चौपाल पर लोगों को समझाया करता कि यदि जीवन में सुखी, और सफल होना चाहो तो एक सूत्र याद रखना “कभी क्रोध मत करना “। एक दिन एक पास के गाँव का व्यक्ति उधर से गुजरा। उसने बूढ़े की शान्ति और सादगी की बात सुन रखी थी । उसे भी उससे मिलने की उत्सुकता थी
वह बूढ़े के पास जाकर बैठ गया और बोला कि “मुझे कोई ऐसा सरल सा सूत्र बताएँ कि जीवन सफल हो जाय।”
बूढ़ा बोला “बस एक काम करना । किसी पर क्रोध मत करना ।” राहगीर ने थोड़ा कम सुनने का नाटक किया । उसने कहा-क्या कहा, मैंने सुना नहीं । बूढ़ा थोड़ा जोर देकर बोला “क्रोध मत किया कर” राहगीर बोला थोड़ा ठीक से एक दफा और बता दें । बूढ़ा तमतमाता बोला “क्रोध मत किया कर।” राहगीर ने लगभग बहरे की तरह जैसे ही पुनः दुहराने को कहा-बूढ़े ने छड़ी उठाई और उसकी खोपड़ी पर दे मारी । हजार दफा कह दिया है कि क्रोध मत किया कर । पर समझता ही नहीं है ।” जो उपदेश दिया जाता है , उस पर यदि स्वयं अमल नहीं किया जाता तो निरर्थक है ।