दैनन्दिन व्यवहार (Kahani)

February 1992

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शिकागो के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री फ्रांसिस वे लेंण्ड पार्कर से एक महिला ने प्रश्न किया । “महाशय ! बच्चों की शिक्षा कब से प्रारम्भ करनी चाहिए” पार्कर ने पूछा-आपका बच्चा कब जन्म लेगा?"  महिला ने कहा “वह तो पाँच वर्ष का हो गया है ।” इस पर पार्कर ने कहा । “मैडम !अब पूछने से क्या लाभ । बालकों का सर्वोत्तम समय तो पाँच वर्ष तक ही होता है जब इनमें सुसंस्कार डाले जा सकते हैं । गीली मिट्टी को उस समय तो सही साँचे में ढाला भी जा सकता है। आपने वह बहुमूल्य समय तो गवाँ दिया ।”

डॉक्टर जीवराज मेहता उन दिनों बम्बई प्राप्त में वित्त मंत्री और बापू के निजी चिकित्सक थे । किसी कार्यवश उन्हें ट्रेन से बड़ौदा जाना पड़ा । जब वे प्लेटफार्म पर उतरे, तो स्वागत के लिए आये अधिकारियों, कर्मचारियों ने उन्हें घेर लिया।

स्टेशन के बाहर जाने के लिए उन्हें पुल पार करके जाना था। तभी उनकी नजर आगे जाती महिला पर पड़ी। वह स्त्री एक हाथ में बक्सा, गोद में बालक, दूसरे हाथ में पोटली थामें थी, 

डॉक्टर साहब ने उस महिला की परेशानी भाँप ली।

दौड़कर उसका बक्सा थामा। अपनापन दिखाते हुए बोले-बहिन जब तुम पुल के उस पार आ जाओ, तो बक्सा ले लेना।” यह देखकर साथी अफसर और दर्शक हैरान रह गये कि इतना बड़ा आदमी भी इतना सरल और सहानुभूति वाला हो सकता है। महामानवों की असामान्यता उनके दैनन्दिन व्यवहार से झलकती है।


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