कौस्तुभ मुनि किसी दीन-दुखी को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करने का अपना व्रत वर्षों से निभाते चले आ रहे थे, किंतु एक दिन उनके द्वार पर कोई सेवा का अधिकारी नहीं आया। दोनों बड़े दुखी हुए। तभी उन्होंने एक वृक्ष तले पड़े कुष्ठ पीड़ित वृद्ध को देखा। वे ईश्वर को इस कृपा के लिए धन्यवाद देते हुए उसके पास पहुँचे और विनम्र शब्दों में उससे उनका आतिथ्य ग्रहण करने का निवेदन किया।
वृद्ध बोला-”आर्य! आपकी इस उदारता के लिए धन्यवाद! पर मैं जाति का चाँडाल हूँ, आपकी उदारता पाने का अधिकार मुझ शूद्र को कहाँ?” सर्वत्र एक ही परमात्मा को देखने वाले कौस्तुभ के लिए कोई शूद्र कैसे हो सकता था। उन्होंने उसको वैसा ही आतिथ्य दिया, जैसा किसी सवर्ण को।
एक लड़का जंगल में गया हुआ था। चारों ओर सुनसान, उस बियाबान जंगल में जहाजों और पेड़ों में झूमने की ही आवाज आती थी। वह लड़का डरा और चिल्लाया, ‘भूत।’ तो उसकी आवाज पहाड़ियों से टकराकर लौट आई और उसे सुनाई दिया, ‘भूत।’ लड़का समझा सचमुच भूत है। अब की बार उसने मुट्ठियाँ कसीं और जोर से चिल्लाया, “तू मुझे खाएगा।” पहाड़ों से टकराकर उसकी आवाज फिर लौट आई और उसने यही समझा कि भूत मुझसे पूछ रहा है। तब वह बोला, “हाँ मैं तुझे खाऊँगा। यही आवाज जब फिर उस तक लौटी तो लड़का डरकर अपने घर चला गया और उसने अपनी माँ से सारी बात कह दी। माँ ने वस्तुस्थिति समझकर कहा, “बेटा अब की बार तुम जंगल में जाओ तो उस भूत से कहना मेरे प्यारे दोस्त मैं तुझे प्रेम करता हूँ। दोबारा जब वह जंगल में गया तो चिल्लाया, “मेरे अजीज दोस्त।” पहाड़ों से उन्हीं शब्दों की प्रतिध्वनि सुनाई दी और लड़के ने समझा, इस बार भूत उसे डरा नहीं रहा है। फिर वह बोला “मैं तुझे प्यार करता हूँ।” पहाड़ों से यही बात फिर टकराकर लौटी तो लड़का खुशी से नाच उठा। क्रिया कि प्रतिक्रिया प्रकृति का एक शाश्वत नियम है।