अपनों से अपनी बात - इस ज्ञानगंगा के प्रवाह को अवरुद्ध न होने दे

November 2003

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अखिल विश्व गायत्री परिवार, युग निर्माण योजना के क्रियाकलाप जिस धुरी पर चलकर 67 वर्षों की यात्रा कर वर्तमान स्थिति में पहुँचे है उसके पीछे ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका की एक विशिष्ट भूमिका है। यह पत्रिका परमपूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी की प्राणचेतना की संवाहिका है। सभी को यह ज्ञात है कि 1926 ईसवी की बसंत पंचमी (18 जनवरी) की पावन वेला में सूक्ष्मशरीरधारी गुरुसत्ता के निर्देशानुसार एक अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलित किया गया था। यह अखण्ड दीप तब से निरंतर जल रहा है एवं विगत तैंतीस वर्षों से गायत्री तीर्थ-शाँतिकुँज में स्थापित है। मिशन के सभी महत्वपूर्ण निर्धारण इस अखण्ड दीपक की साक्षी में ही किए गए। ‘अखण्ड ज्योति’ उसी का परिणाम है। कठोर गायत्री तप के माध्यम से युवा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समन्वयात्मक तर्क, तथ्य, प्रमाणों सहित परोक्षजगत की विधि व्यवस्था एवं आर्ष वाङ्मय की युगानुकूल प्रस्तुति इसकी विशेषता रही है, जिसने छात्र, अध्यापक, प्रस्तुति एवं प्रबुद्धवर्ग, सभी को अपनी ओर खींचा है।एक बहुत बड़ा वर्ग नास्तिक होने से बचा है।

जीवन जीने की कला का विशेष देते हुए यह अनवरत बिना किसी विज्ञापन के ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस’ (न लाभ न हानि) स्तर पर जन जन तक पहुँचती रही है। आज तनाव विक्षोभ संक्षोभों की चारों ओर बाढ़ है। अशक्ति का साम्राज्य भोगवाद की बढ़ोतरी के कारण दिखाई देता है।जीवनशक्ति की दृष्टि से दुर्बल कमजोर मनोबल के व्यक्ति बढ़ते जा रहे है जबकि इससे भी अधिक तेजी से अस्पताल, मेडिकल कॉलेज एवं नर्सिंग होम खुलते चले गए है। मानवी स्वास्थ्य चिंतन पद्धति में परिवर्तन, पथ्यापथ्य के नियमों का परिपालन तथा आयुर्वेद योग यज्ञोपचार से कैसे मनुष्य जाति को स्वस्थ बनाया जा सकता है, यह मार्गदर्शन ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका में नियमित रूप से देखा जा सकता है। दृष्टाँतों की शैली से जीवन में गुणों का विकास कैसे किया जाए यह समग्र मार्गदर्शन इस पत्रिका में मिलता है।

‘अखण्ड ज्योति’ युगधर्म को महती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ही अखण्ड दीपक का एक प्रतीक बनी। इस पावन प्रतीक द्वारा ही युग परिवर्तन की आँधी ने जन्म लिया है। आज जनसामान्य का एक बहुत बड़ा तबका, नारीशक्ति एवं युवावर्ग आशावादी हो चला है तो उसके मूल में ‘अखण्ड ज्योति’ की भूमिका नकारी नहीं जा सकती। परमपूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म कारणसत्ता ही इस पत्रिका रूपी कागजों के बंडल के माध्यम से जन जन को प्रकाश दे पाने में समर्थ हो पाई है। संपादक के रूप में किसी का भी नाम हो, लिखने वाले की कलम में प्राण सूक्ष्म अंतरिक्ष से गुरुसत्ता के माध्यम से आता है। यह तो लौकिक औपचारिकता है जो विभिन्न व्यक्तियों के नाम छपते है, नहीं तो इस प्राण−प्रवाह को सतत अध्यात्म चेतना के ध्रुव केंद्र हिमालय से आता माना जाना चाहिए। अपना सौभाग्य मानना चाहिए कि उस ज्ञानगंगा से जुड़ने, उसमें स्नान करने का अवसर मिला।

गायत्री महाविद्या की शब्दशक्ति प्रधान साधना, यज्ञ की ऊर्जा एवं उसकी पदार्थ जगत की कारण शक्ति में उभार लाने की वृत्ति पर वैज्ञानिक शोध निरंतर ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में हो रहा है। 1971 में स्थापित यह संस्थान अगले वर्ष (24-25) अपनी रजत जयंती मना रहा है। शोध संस्थान एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के महत्वपूर्ण ज्ञान विज्ञान संबंधी निष्कर्ष ‘अखण्ड ज्योति’ के माध्यम से सबके पास पहुँचते है। आज की परिस्थितियों में हमारा राष्ट्रधर्म क्या हो, हम कैसे एक श्रेष्ठ नागरिक बनें यह समग्र मार्गदर्शन इस पत्रिका में 66 पृष्ठों में पाया जा सकता है। टूटते परिवार, कलह द्वेष की बढ़ती महाव्याधि हेतु इसने परिवार निर्माण, सुसंस्कारिता संवर्द्धन जैसे प्रयोगों को प्रमाण सहित प्रस्तुत किया है। हिंदी की तो इस पत्रिका ने इतनी सेवा की है कि आने वाले समय की पीढ़ी ही इसका मूल्याँकन कर सकेगी। एक पत्रिका युगसृजेताओं की एक सेवावाहिनी खड़ी कर दे,उनसे समयदान अंशदान का संकल्प भी करा ले एवं कलियुगी चिंतन प्रवाह में एक उत्कृष्ट चिंतन का माहौल बना दे, इसका उदाहरण अन्यत्र कही देखने को नहीं मिलता। यह तो इस प्राणपंच की ही महिमा है।

‘अखण्ड ज्योति’ यदि मस्तिष्क है तो पाठक परिजनों के रूप में फैला विशालकाय समुदाय उसका काय कलेवर हैं।दोनों का अस्तित्व परस्पर अन्योन्याश्रित है। परिजन ही है जो इस पत्रिका के प्रवाह को अमृत चिंतन को जन जन तक पहुँचाते है। ये सभी पोस्टमैन की भूमिका भी निभाते है एवं सत्परामर्श देने वाले ऋषि की भी। 66 पृष्ठों का यह प्राण प्रवाह सभी परिजनों तक पहुँचकर नूतन प्राणसंचार करता है। सभी इसकी प्रतीक्षा करते है व मिलने पर ऐसा अनुभव करते है, मानो गुरुसत्ता की पाती सीधे उनके पास पहुँच गई हो।यह जो पाठक परिजन का परिकर है, अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अधिक संख्या में पत्रिका मँगाकर ज्ञान के जिज्ञासु साधकों तक पहुँचाने का कार्य यही परिकर करता है। पहले तो प्रकाशन में विलंब भी हो जाता था, परंतु विगत दो वर्षों से उसे एक माह पूर्व ही तैयार कर डिस्पैच कर दिया जाता है। एक माह से पंद्रह दिन पूर्व मिलने पर पाठक हार्दिक प्रसन्नता की अभिव्यक्ति भरे पत्र हमें भेजता है। यह इस पत्रिका की लोकप्रियता, उसकी व्यक्ति निर्माण में भूमिका का परिचायक है।

पिछले दिनों महँगाई बेतहाशा बढ़ी है। छपाई संबंधी सामग्री, कागज आदि अत्यधिक महंगे हो गए है। जब गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाता, प्रिटिंग पेपर श्रेष्ठ ही खरीदा जाता, डी टी पी के माध्यम से अशुद्धि रहित सामग्री भेजी जाती है तो परिजनों को यह मानना चाहिए कि हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है। निरंतर घाटे में चलकर तो कोई भी संस्थान चला पाना संभव नहीं है। वर्तमान समय में पत्रिका की यही स्थिति है। छपाई मूलतः रंगीन कवर पृष्ठों पर गुरुसत्ता के संग्रहणीय चित्रों सहित तथा मिशन की गतिविधियों सहित सभी तक पत्रिका भेजी जाती रही है। अब वर्तमान मूल्य में यह संभव नहीं है।

आज की साप्ताहिक हिंदी पत्रिकाओं इंडिया टुडे, आउटलुक अथवा कादंबिनी (मासिक) पर निगाह डालें तो पता चलेगा कि विज्ञापन भी छापने वाली ये पत्रिकाएं ‘अखण्ड ज्योति’ की तुलना में कितनी महंगी हैं। इंडिया टुडे बारह रुपये एक प्रति एवं आउटलुक दस रुपया प्रति पर (वार्षिक 441 रुपये, 45 रुपये) बचत नीति के आधार पर उपलब्ध है। कादंबिनी हिंदी साहित्य की एक स्वस्थ विधा स्थापित करने वाली पत्रिका है। इसका मूल्य भी एक प्रति का पच्चीस रुपये तथा दो सौ तीस रुपये वार्षिक है। पाठ्यसामग्री में किसी की भी तुलना नहीं की जा रही है। गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित ‘कल्याण’ मासिक काफी पुरानी पत्रिका है। इसका भी वार्षिक शुल्क एक सौ तीस रुपये है। 77 वर्षों से निरंतर प्रकाशित यह पत्रिका अत्यधिक सुँदर है, आस्तिकता संवर्द्धन में सहायक रही है, किंतु यह भी वर्तमान मूल्य पर 47 पृष्ठों के साथ कुछ श्रीमंतों के अनुदानों के माध्यम से सब्सीडाइज्ड (न्यूनतम) मूल्य पर प्रकाशित होती है। ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका विगत तीन वर्षों से निरंतर 72 रुपये वार्षिक (6 रुपये एक प्रति) के आधार पर परिजनों को मिल रही है। अखण्ड ज्योति संस्थान का म्रुदण प्रकाशन डिस्पैच वाला महकमा ही इतना बड़ा है कि उसे एक विराट परिवार का नाम दिया जा सकता है।उनमें कई वेतनभोगी है, उनकी आवश्यकताओं का पूरी करना भी इस संस्थान के अभिभावक का दायित्व है। डी टी पी, मशीन, बिजली, कागज व स्याही के खरच अतिरिक्त है एवं रुपये के अवमूल्यन के साथ ये भी जमीन से आसमान तक जा पहुँचे है।

इन्हीं सब कारणों को देखते हुए ‘अखण्ड ज्योति’ का वार्षिक मूल्य प्रति काँपी एक रुपया बढ़ाकर चौरासी रुपये इस दिसंबर मास से किया जा रहा है। 24 की जनवरी वाली पत्रिका अब बढ़े हुए मूल्य पर मिलेगी एवं तदनुसार ही सबको चंदा भेजना होगा। पहले यह छह रुपया प्रति काँपी था, अब सात रुपया प्रति काँपी होगा, जो कि किसी भी स्थिति में अधिक नहीं माना जाना चाहिए। ज्ञानगंगा का अविरल प्रवाह अवरुद्ध न हो, उसका एक ही तरीका है कि इस पत्रिका के प्राप्त होते ही नए ग्राहक बनाने, पुरानों को जोड़े रखने एवं चंदे की राशि समय पर अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा पहुँचाने का क्रम चलता रहे। मिशनरी स्तर पर चल रहे इस प्रयोग को अपने परिजनों को ही सींचना होगा, आगे बढ़ाना होगा।

परिजनों पर आए आर्थिक भार को हम समझते है। विकल्प मात्र यही था। नहीं तो पत्रिका के बारह पृष्ठ कम करने पड़ते। अभी 67 पृष्ठ रंगीन कवर सहित यह भेजी जा रही है। बीच में मूल्य बढ़ाने की अपनी नीति है नहीं। यदि पृष्ठ कम किए जाते हैं तो इस प्राण संजीवनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अप्रकाशित ही रहा जाएगा। इसलिए मूल्य बढ़ाकर इसकी गुणवत्ता और बढ़ाने का एक निर्णय लिया गया। कई ऐसे भविष्यकथन है, जो पूज्यवर द्वारा सत्तर व अस्सी के दशक में किए गए थे। वे आज कैसे सही होते जा रहे है, प्रमाण सहित यह सामग्री अब पत्रिका में सभी पढ़ सकेंगे। इसके अलावा जीवन जीने की कला के गुहासूत्रों (जिनका संक्षिप्त विवेचन विगत अंक में प्रस्तुत किया गया था) पर आधारित एक विशेषाँक भी परिजन जनवरी, 24 में पढ़ सकेंगे। ऐसी विलक्षण पाठ्यसामग्री का क्रम सतत चलता रहेगा।

परिजन पाठक लोकशिक्षण करने वाली इस पत्रिका की पाठक संख्या जितनी बढ़ायेंगे, उतने ही पुण्य के भागीदार बनेंगे। सभी पाठक, थोक पत्रिका मँगाने वाले परिजन नोट कर लें कि अब दिसंबर, 23 के अंक के समापन के साथ ही जनवरी, 24 से पत्रिका का वार्षिक चंदा 84 रुपये (चौरासी रुपये) होगा। विदेश के लिए यह नौ सौ रुपये होगा तथा आजीवन (सुरक्षा निधि) पंद्रह सौ रुपया होगी। आशा है कि सभी इसे स्वीकार कर पूरे उत्साह से पत्रिका की संख्या बढ़ाने में लग जाएंगे।


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