वशिष्ठ मुनि के आश्रम पर विश्वामित्र एक बार सेना सहित पहुँचे। अपनी कामधेनु की शक्ति से महर्षि ने उनका यथोचित सत्कार किया। उस गौ का प्रभाव देखकर राजा विश्वामित्र ने उसे लेना चाहा। स्वेच्छया देने से इन्कार करने पर बलात् ले जाने लगे। कामधेनु ने महर्षि से अनुमति प्राप्त कर अपने शरीर से लाखों सैनिक प्रकट करके उनकी सेना को पराजित कर दिया। ब्रह्मतेज का यह बल देखकर उन्होंने क्षात्र धर्म त्याग कर ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का निश्चय किया। ”धिक बलं क्षत्रिय बलं ब्रह्मतेजो बलं बलम।” यह कहते हुए उन्होंने महान तप किया। तपस्या के प्रभाव से वे इतने सामर्थ्य हो गए कि दूसरी सृष्टि रचने लगे। ब्रह्म ने उन्हें सृष्टि सकार्य से रोका, ब्राह्मणत्व पद प्रदान किया और वसिष्ठ जी ने उन्हें ‘ब्रह्मर्षि’ स्वीकार किया। पात्रता का विकास ही अनेकानेक विभूतियों और संपदाओं की उपलब्धि का एकमात्र मार्ग है।