मनुष्य का अंतराल प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है। जो कोई उसको साधसुधार कर परिष्कृत विकसित कर लेगा, वह स्वयं तो धन्य बनेगा ही अन्य अनेकों को निहाल कर जाएगा। वास्तविक सहायता शुद्ध अंतःकरण से ही बन पड़ती है। जहाँ ईर्ष्या द्वेष अहंकार प्रतिकार ही भावना भरी हो, वहाँ तो अपना ही कल्याण मुश्किल है दूसरों का उपकार क्या हो सकेगा। इसीलिए विज्ञजन यह कहते है कि अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।जो इसे संपन्न कर लेते है वे अपने साथ-साथ दूसरों का भी कल्याण करते है। इसे सत्यापित करने वाली आए दिन ऐसी कितनी ही घटनाएं घटती रहती है जिनसे विदित होता है कि सचमुच परिमार्जित अंतराल से देवतुल्य लाभ है।
ऐसी ही एक सत्य घटना सन 1914 की जनवरी माह की है। एक व्यक्ति अपने सीने से एक किशोर को चिपकाए बेतहाशा दौड़ा चला जा रहा था और किशोर बुरी तरह चीखता चिल्लाता जा रहा था। अलबामा नदी तट पर स्थित सेल्मा शहर के मिनोटा मुहल्ले की खिड़कियां और दरवाजे खड़खड़ाकर खुलने लगे, यह देखने के लिए कि आखिर बात क्या है? उस मुहल्ले में रहने वाले डॉ. युजिन भी जिज्ञासावश निकल पड़े तो पता चला कि एक व्यक्ति अपनी गोद में एक बालक को लेकर दौड़ रहा है, जो कि जल गया है। पीछे पीछे वे भी अस्पताल पहुँचे। वहाँ पहले से ही भीड़ इकट्ठी थी। उन्होंने बालक को देखा तो पता चला कि उसका चेहरा बुरी तरह झुलस गया है। यह सब कैसे हुआ? इसके जवाब में पिता ने संभावना व्यक्त की कि फोटो xलैश का पाउडर फर्श पर बिखरा पड़ा था। अनुमान है कि मेरी अनुपस्थिति में किशोर ने उसे इकट्ठा किया और माचिस जलाई होगी। इससे ज्वलनशील पाउडर में आग लगने और विस्फोट होने से इसका चेहरा जल गया।
बालक को अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में लाया गया और उपचार आरंभ कर दिया गया। जब पिता पुत्र को लेकर अस्पताल के कमरे में पहुँचा तो बाहर खड़ी भीड़ में से किसी ने उन्हें पहचानते हुए कहा कि ये सम्मोहन विद्या के विशेषज्ञ विलक्षण क्षमतासंपन्न विश्वप्रसिद्ध व्यक्ति एडगर केसी है और बालक उनका पुत्र हगलीन।
चिकित्सालय में अवलोकन कर विशेष डॉक्टरों के दल ने अनुमान लगाया कि बालक को तो निस्संदेह बचाया जा सकता है पर उनकी आँखों को बचा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है। चिकित्सा चलती रही। एक सप्ताह बाद एक आँख में तेज दर्द आरंभ हुआ। चिकित्सकों ने विचार विमर्श कर एडगर केसी से कहा कि बच्चे की एक आँख निकालनी पड़ेगी। किसी प्रकार यह बात बालक को ज्ञात हो गई तो उसने चिकित्सकों का विरोध करते हुए कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते। हमारे पिता स्वयं एक आध्यात्मिक चिकित्सक है। उन्होंने कइयों का सफल उपचार किया और गंभीर लोगों से उन्हें मुक्ति दिलाई है।आप कृपया इस संदर्भ में उन्हें अपनी चिकित्सा करने की अनुमति प्रदान करें।
चिकित्सकों ने किशोर की प्रार्थना स्वीकार कर ली और एडगर केसी से अपना उपचार आरंभ करने का कहा। एडगर केसी बेंच पर बैठे और थोड़ी ही देर में स्वसम्मोहन द्वारा गहन तंद्रा की स्थिति में चले गए। पत्नी को इसके बाद क्या करना है, इसे उन्होंने पहले ही समझा दिया था।
पत्नी से एडगर की बताई प्रक्रिया आरंभ की।उसने पति की सम्मोहन अवस्था में प्रश्न करने आरंभ किए। इसी क्रम में एडगर ने बताया कि हगलीन की नेत्र ज्योति समाप्त नहीं हुई है। क्षति तो थोड़ी पहुँची है पर उपचार द्वारा उसे ठीक किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि डॉक्टर जो दवा चला रहे है वह ठीक है पर उसमें तनिक टेनिक एसिड भी स्वल्प मात्रा में मिलना आवश्यक है। ऐसा ही किया गया। यद्यपि चिकित्सकों को विश्वास नहीं था कि नेत्र दृष्टि लौट सकेगी किन्तु सोलह दिनों के उपराँत जब आँखों से पट्टी हटाई गई तो बालक उत्फुल्लत से चीख पड़ा मैं देख सकता हूँ। और यह कहकर डॉक्टरों को अचंभे में डाल दिया।
एक सामान्य सा व्यक्ति नेत्र विशेषज्ञ की वैज्ञानिक जानकारी से भी अधिक गहराई से कैसे प्रवेश कर सका? यह प्रश्न इस घटना के बाद से अनेकों के मन में उभरा, जिसका समाधान स्वयं एडगर केसी ने यह कहते हुए किया कि उन्हें अवचेतन मन की विलक्षण क्षमता का तनिक भी ज्ञान है, उनके लिए यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। यदि मन को परिष्कृत कर उसकी उस सामर्थ्य को जाग्रत किया जा सके तो ऐसा करतब हर कोई दिखा सकता है यह माना हुआ तथ्य है और एक सत्य भी।