न हि गायत्री समो मंत्रः

November 2003

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‘गायत्री मंत्र’ को भारतीय संस्कृति का मेरुदंड कहा गया है। मनुष्य का स्वस्थ क्रियाशील शरीर मेरुदंड के ही स्वस्थ व सक्षम रहने पर होता है। मेरुदंड की विकृति, संपूर्ण शरीर को लुँज-पुँज स्थिति में पहुँचा देती है यहाँ तक कि उसकी संवेदनशीलता के लुप्तप्राय हो जाने से मस्तिष्क का अंगों पर से नियंत्रण भी जाता रहता है, व्यक्ति का उठना-बैठना, चलना घूमना सब बंद हो जाता है। गायत्री मंत्र के आधार पर भारतीय संस्कृति ने विकास पाया है और अपने वर्चस्व को संपूर्ण विश्व में स्थापित करने में सफल हुई है, इसकी साधना उपासना से लोग विवेकशीलता प्राप्त करते रहे, तब तक वे जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहे, देवमानव की कोटि में गिने जाते रहें।

गायत्री मंत्र की मूल प्रेरणा विवेकशीलता के रूप में प्राप्त होती है। उपासना के क्षेत्र में इसीलिए सभी मंत्रों में इस गायत्री मंत्र की श्रेष्ठता बताई गई है। इसे महामंत्र माना गया है। देवता भी इसी गायत्री मंत्र की उपासना करते है :-

सप्तकोटि महामंत्रा गायत्री नायकाः स्मृताः। आदिदेव मुपासन्ते गायत्री वेदमातरम॥

संपूर्ण देवगण जिस गायत्री मंत्र की उपासना करते है वह गायत्री मंत्र सात करोड़ महामंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है।

व्यक्ति से जाने अनजाने कुछ न कुछ गलत कार्य हो जाया करते है जिनके परिणामस्वरूप पाप का भागी बनना पड़ता है।पाप ताप से मुक्ति दिलाने में गायत्री मंत्र रामबाण होता है। गायत्री मंत्र की प्रेरणाएं उसे सद्बुद्धि देकर कुपथ से विरत कर देती है। शास्त्रों में इसीलिए सर्वत्र पापों से छुटकारा पाने के लिए गायत्री मंत्र के जप करने का विधान किया गया है :-

सावित्रीच्चं जपेन्नित्यं पवित्राणि च शक्तिः। (सम्वर्त स्मृति 133)

अपने पापों से मुक्त करने के लिए यथाशक्ति सावित्री (गायत्री) मंत्र का नित्य जप करना चाहिए।

आपस्तंब स्मृति (5/5) में भी कहा गया है :-

अहोरात्रन्तु गायच्याँ जपं कृत्वा विशुध्यति।

दिन रात गायत्री का जप करके मनुष्य पापों से शुद्ध हो जाता है।

गायत्री उपासना द्वारा पापों से तो विनिवृत्ति होती ही है साथ ही उपासक में श्रेष्ठता, सद्बुद्धि व सद्विचारणा का भी विकास होता है, जिससे उनका व्यक्तित्व परिष्कृत और प्रखर होता जाता है। उसे भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियाँ प्राप्त होती जाती है :-

ऐहिकामुष्मिकं सर्व गायत्री जपतो भवेत। -अग्नि पुराण

गायत्री जपने वाले को साँसारिक और पारलौकिक समस्त सुख प्राप्त हो जाते हैं।

देवता भी जब मनुष्य की सहायता करते है तब वे मनुष्य को सद्बुद्धि ही देते है, न कि अन्य कुछ।

न देवा दंडमादाय रक्षन्ति पशुपालवत। यं हि रक्षितुमिच्छन्ति बुद्धया संयोजन्ति तम॥

देवता लाठी लेकर गोपाल की तरह किसी के पीछे पीछे चलकर उसकी रक्षा नहीं करते अपितु वे जिसकी रक्षा लेकर की इच्छा करते है,उसे सद्विवेक प्रदान कर देते है।

सद्विवेक की प्राप्ति ही गायत्री मंत्र का प्रमुख लाभ है।गायत्री उपासक इसी कामना से गायत्री साधना में प्रवृत्त होता है।

जीवन के परमलक्ष्य को प्राप्त करने हेतु जिस विवेक बुद्धि की निताँत आवश्यकता है वह गायत्री मंत्र की साधना उपासना द्वारा सहज ही प्राप्त हो जाती है इसमें संदेह नहीं।


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