राजा की तरह सुखपूर्वक जीता (kahani)

November 2003

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एक राज्य का यह नियम था कि जनसाधारण में से जो राजा चुनकर गद्दी पर बैठाया जाए, उसे दस वर्ष बाद ऐसे निविड़ एकाकी द्वीप में छोड़ दिया जाए, जहाँ अन्न-जल उपलब्ध न हो। कितने ही राजा इसी प्रकार अपने प्राण गँवा चुके थे। जो अपना राज्यकाल बिताते थे, उन्हें अंतिम समय में अपने भविष्य की चिंता दुखी करती थी, तब एक समय आ चुका होता था।

एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति जान-बूझकर उस समय गद्दी पर बैठा, जब कोई भी उस पद को लेने को तैयार न था। उसे भविष्य का ध्यान था। उसने उस द्वीप को अच्छी तरह देखा व वहाँ खेती करने, जलाशय बनाने, पेड़ लगाने तथा व्यक्तियों को बसाने का कार्य आरंभ कर दिया। दस वर्ष में वह नीरव एकाकी प्रदेश अत्यंत रमणीक बन गया। अपनी अवधि समाप्त होते ही राजा वहाँ गया और सुखपूर्वक शेष जीवन व्यतीत किया।

जीवन के थोड़े दिन ‘स्वतंत्र चयन’ के रूप में हर व्यक्ति को मिलते हैं। इसमें वर्तमान का सुनियोजन और भविष्य की सुखद तैयारी जो कर लेता है, वह दूरदर्शी राजा की तरह सुखपूर्वक जीता है।


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