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November 2003

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शरीर का वजन अपने ही पैर उठाते हैं। यदि पैर असमर्थ हों तो खड़ा होना या चल-फिर सकना भी कठिन है। भोजन पचाने का काम अपना ही पेट करता है। यदि पाचन-प्रणाली बिगड़ जाए तो दूसरों के पेट से अपना भोजन पचा लेने का काम संभव न हो सकेगा। विद्या प्राप्त करने के लिए स्वयं ही पढ़ना पड़ता है। अपने ही पुण्य-पाप से मनुष्य सुख-दुख प्राप्त करता है।

जिसे सुखद आनंदमय संसार में रहना है, उसे निर्माण-कार्य अपने भीतर से ही आरंभ कर देना चाहिए। बाह्य निर्माण की, जैसी कल्पना हो, उसी के अनुरूप अपना निर्माण किया जाए।

-परमपूज्य गुरुदेव


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