समस्त सिद्धियों का आधार तप-

November 2003

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गायत्री महामंत्र हमारे साथ-साथ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। देवियो, भाइयो। लोहे को गलाए बिना हम उससे कीमती हथियार नहीं बना सकते, पुरजे नहीं बना सकते। आप इससे क्या बनाएँगे? साहब! हमारा मन पुरजे बनाने का है, तलवार बनाने का है, तरह-तरह के औजार बनाने का है। लोहे से कैसे बनाएँगे? पहले इसको गलाएँगे, तपाएँगे? जब तक इसे गलाएँगे-तपाएँगे नहीं, तब तक कोई हथियार नहीं बन सकता। सोना हमारे पास है और उससे हमें कई तरीके के जेवर बनाने है। क्या-क्या जेवर बनाने है? बहुत बढ़िया वाले जेवर बनाने है। तो सोने से यों ही बनाइए न? नहीं साहब! जब तक तपाएँगे नहीं, गलाएँगे नहीं, तब तक सोने से कोई जेवर नहीं बन सकता।

गलाई और ढलाई

मित्रो! ठीक इसी तरह इन्सान को गलाए बिना, तपाए बिना कोई कीमती नसल नहीं बन सकती। बहादुर महापुरुषों के इतिहास जब हम पढ़ने लगते है तो हमको यह बात पता चलती है कि इनमें से हर व्यक्ति को तपना पड़ा है, गलना पड़ा है और ढलना पड़ा है। गरम होना पड़ा है। आप क्या चाहते है? साहब, हम तो चैन की जिन्दगी जीना चाहते है और खुशहाली की जिन्दगी जीना चाहते है, मौज करना चाहते है, मजे उड़ाना चाहते है। और क्या करना चाहते है आप? और हम आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलना चाहते है। खबरदार! बकवास बंद कीजिए। किस बात की? इस बात की कि आप आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलना चाहते है। भगवान के रास्ते पर चलना चाहते है। अपने शरीर में से शक्तियाँ उभारना चाहते है। सिद्धियाँ उभारना चाहते है। देवता को इस शरीर में अवतरित करना चाहते है। इस घिनौने जीवन में जिसमें कि विलासिता कूट-कूटकर भरी हुई है। अय्याशी कूट-कूटकर भरी हुई है। इस शरीर में महानता किस तरह से पैदा कर पाएगा? नहीं साहब! हम महानता पैदा कर सकते है। ग्यारह माला जप करेंगे। बंद कीजिए आप ग्यारह माला। नहीं साहब! ग्यारह माला जप करेंगे, हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे, देवी का पाठ करेंगे। आपकी मरजी है, चाहे जो करें या ना करें, लेकिन महानता का उद्देश्य, आध्यात्मिकता का एक मात्र उद्देश्य है कि आपको अपने आप को तपाना पड़ेगा, अपने बहिरंग जीवन को गरम करना पड़ेगा। तपाने और गरम करने की प्रक्रिया को मैं समझाता हुआ चला आ रहा हूँ आपको और यह बताता आ रहा हूँ कि आदमी को अपना उद्धार करने के लिए और दूसरों का उद्धार करने के लिए तपस्वी का जीवन जीने के अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं है। आध्यात्मिकता के लिए भी इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। विलासिता का जीवन जीएंगे, अय्याशी का जीवन जीयेंगे और आध्यात्मिकता के लाभों को प्राप्त करेंगे-बेटे, ये बेकार के सपने देखना बंद कर। दोनों काम साथ-साथ नहीं हो सकते-”दुइ कि एकसंग नहिं होहि भुआलू। हसब ठठाइ फुलाउब गालू॥ आप दोनों काम एक साथ किस तरह से करेंगे। जो से हंसेंगे तो आप गाल नहीं फुला सकते और अगर गाल फुलाएँगे तो हँसने का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाएँगे। हँसना और गाल फुलाना, दोनों काम एक साथ नहीं हो सकती। हम पूरब को भी चलेंगे और पश्चिम को भी चलेंगे। पूरब और पश्चिम, दोनों दिशाओं की ओर आप एक साथ नहीं चल सकते है। अगर आप पूरब की ओर चलेंगे तो पश्चिम की ओर नहीं जा सकते और पश्चिम को चलेंगे तो पूरब को नहीं जा सकते। इसी तरह तृष्णाओं का, वासनाओं का जीवन जीएंगे तो आप आध्यात्मिक प्रगति की ओर नहीं बढ़ सकते। आध्यात्मिक प्रगति की ओर बढ़ेंगे तो आपको वासनाओं-तृष्णाओं से भरे जीवन पर अंकुश लगाना पड़ेगा। आप इन दोनों के फायदे उठाना चाहते है तो यह नहीं हो। एक को मंजूर कर लीजिए और एक को मना कर दीजिए। हमको यह करना है कि नहीं करना है। इधर चलना है कि नहीं चलना है। आप यह फैसला कर ले तो नफे में रहेंगे। दोनों तरफ चलेंगे तब? तब हम क्या कह सकते है।

दोहरा व्यक्तित्व न हो

बेटे, इस सम्बन्ध में हम कछुए का एक छोटा सा किस्सा सुनाते है। दोनों तरफ से चलने वाले एक साँप का और एक कछुए का किस्सा अखण्ड ज्योति में छपा है। एक साँप के दो मुँह थे एक आगे की तरफ और एक पीछे की तरफ। यह जापान का किस्सा है। उसका मालिक जब उसे दूध पिलाता था तो दोनों के बीच में रस्सी लगा देता था, ताकि दोनों साँप आपस में लड़ने न पाए। ये क्या करते थे? दोनों एक दूसरे को काटने की कोशिश करते थे और दूध छीनने को प्रयत्न करते थे। कछुआ भी ऐसे ही था। उसका एक मुँह पीछे की तरफ था और एक आगे की तरफ। पीछे वाला कछुआ यह कोशिश करता था कि आगे की ओर चलना चाहिए। इस तरह सारा दिन खींच तान करता रहता था। आधा इंच इधर चला, आधा इंच उधर चला सारे दिन ऐसे ही चलता रहता था। मित्रों! आपके भीतर भी अगर दो व्यक्तित्व बने रहेंगे तो आप एक में भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकेंगे। अगर आप दुनिया में अय्याशी का, विलासिता का, तृष्णा का जीवन भी जीना चाहेंगे और आध्यात्मिकता की चालें भी चलाना चाहेंगे तो आपकी हैसियत उस कछुए जैसी हो जायेगी, जैसे मैं अभी कह रहा था। एक फैसला कर लीजिए कि आपको कहाँ चलना है? एक रास्ता बंद कर लीजिए कि आपको कहाँ चलना है? एक रास्ता बंद कर दीजिए। अगर आपको आध्यात्मिकता की राह पर चलना है तो आप अपने भौतिक जीवन को तपस्वी बनाने के लिए नष्ट कीजिए।

तपस्वी जीवन बनाइए

भगवान बुद्ध अन्तिम भगवान है, जो हमारे सबसे नजदीक आते है। भगवान के दस अवतार हुए है या बीस, इस बहस में मैं नहीं पड़ता। दस अवतारों का भी जिक्र आता है और चौबीस अवतारों का भी जिक्र आता है। दोनों ही अवतारों में अन्तिम हमारे बुद्ध हुए। भगवान बुद्ध ने जनसाधारण का जैसा बढ़िया मार्गदर्शन किया है मैं नहीं जानता कि इससे भी अच्छा कोई मार्गदर्शन किया गया हो। कलाओं के इतिहास में भगवान की कलाओं का जैसे-जैसे विकास हुआ है, उस क्रम में सबसे ज्यादा कलायें भगवान बुद्ध में है। परशुराम जी में तीन कलायें थी। रामचन्द्र जी की बारह कलायें मानी गयी है। बुद्ध की कितनी कलायें मानेंगे, मुझे मालूम नहीं, लेकिन कलाओं के क्रम में यह इतिहास बढ़ता हुआ चला गया। मत्स्य, कच्छप से लेकर वामन, वाराह तक कलाओं का यह क्रम पुराण ग्रंथों में भरा हुआ पड़ा है। श्रीकृष्ण भगवान को हम सोलह कला का मानते है तो बुद्ध भगवान की भी इतनी तो होगी ही। बीस कलाओं तो उनकी माननी पड़ेगी। पुराणों में कही लिखा जरूर होगा, पर मेरी निगाह में नहीं आया। उनकी जरूर ज्यादा कलायें रही होगी। उन्होंने यह बताया था कि अपने आप को सम्पन्न और दूसरे आदमियों को समुन्नत बनाने के लिए अगर आदमी को कुछ करना चाहिए तो उसकी गतिविधियाँ क्या होनी चाहिए? इसके लिए भगवान बुद्ध के पास एक ही हथियार था-तपस्वियों का हथियार। तपस्वियों का हथियार प्राप्त करके बुद्ध स्वयं समर्थ बने थे। मित्रों! मैं सोचता हूँ कि दुनिया में सबसे सम्पन्न आदमियों में भगवान बुद्ध का नाम होना चाहिए। इनसे और कोई मालदार है? नहीं, उनसे और अधिक कोई मालदार नहीं हो सकता। मालदारों में फोर्ड का मैंने सुना है, निजाम हैदराबाद का सुना है और भी बेटा छप्पन आदमियों का नाम आते है, पर मैं जानता हूँ कि भगवान बुद्ध का नाम, केवल आज के जमाने में ही नहीं है। पहले भी उनसे अधिक मालदार कोई भी आदमी नहीं हो सकता। अंगकोरवाट कंबोडिया का एक शहर था, जो अब मात्र खंडहर है। यह इतना बड़ा खंडहर है इतना शानदार खंडहर है कि लोग अभी भी यह कहते हैं कि दुनिया के इतिहास में इतनी बड़ी इमारत किसी ने नहीं बनाई। पुरातत्ववेत्ता, जो खंडहरों का इतिहास जानते है वे भी मानते है कि दुनिया का सबसे बड़ा खंडहर कौन सा हो सकता है। दुनिया पैसे पर जाती है फिर भी लोग इस सबसे प्राचीन और सबसे बड़े खंडहर और इमारत को देखकर आते है। कंबोडिया का अंगकोरवाट भगवान बुद्ध की सम्पन्नता का स्मरण दिलाता है। यह एक विशाल बुद्ध विहार था। बेटे और क्या बताऊँ आपको, सारे संसार में चले जाइए। अरब देशों में मक्का-मदीना के पास जो पुराने बौद्ध विहार बने हुए है। उनका इतिहास हमने अपनी भारतीय संस्कृति के विश्व को अजस्र अनुदान में लिखा हुआ है। मक्का मदीने में जहाँ हजरत मोहम्मद साहब की मीनार बनाई गयी थी, वहाँ का बौद्ध विहार उससे भी ज्यादा ऊँचा था, ऊपर से दिखाई पड़ता था, अतः हुक्म दिया गया कि इसको तोड़ा जाये, गिराया जाये और यहाँ के विहार बंद किए जाये। सारे-के-सारे मुस्लिम देशों में और सारे-के-सारे अरब देशों में बुद्ध विहार फैले हुए पड़े थे।

बुद्ध का चमत्कार

मित्रो! बुद्ध विहार में कितनी सामर्थ्य थी- यह मैं इमारतों की बात कह रहा हूँ। तक्षशिला की बात कह रहा हूँ। नालंदा विश्वविद्यालय की बात कह रहा हूँ। हिन्दुस्तान में श्रावस्ती की कह रहा हूँ। अजंता और एलोरा के बुद्ध विहारों की बात कह रहा हूँ। रंगून के पगोडा की बात कह रहा हूँ, जो स्वर्णमंदिर के नाम से प्रचारित है। पगोडा में सात टन भारी सोने की बुद्ध की मूर्ति बनी हुई है। बेटे, मैं यह इमारतों की बात कहता हूँ। बुद्ध के ज्ञान की बात मैं नहीं कहता, बुद्ध साहित्य की बात नहीं कहता केवल इमारतों की बात करता हूँ। चाइना में जितने ज्यादा प्राचीनकाल के मन्दिर दिखाई पड़ते है, सब बुद्ध का इतिहास है। आप सारे चीन में घूम आइए, कितना बड़ा देश है। हिन्दुस्तान से कई गुना बड़ा है। लम्बाई-चौड़ाई में और जनसंख्या की दृष्टि से भी। मन्दिर हिन्दुस्तान में भी हैं और मन्दिर चीन में भी है। लेकिन चीन में किसके मन्दिर है? वे सब बुद्ध के मन्दिर हैं। बुद्ध की यह समर्थता बेटे, इमारतों के हिसाब से बता रहा हूँ और किसी हिसाब से नहीं बता रहा हूँ। मित्रो! सम्पन्न बुद्ध ने क्या काम किया? मैं सोचता हूँ कि इतनी बड़ी क्रान्ति और किसी आदमी ने नहीं की। जिस समय में बुद्ध ने विचार क्रान्ति की थी, उस समय और कोई नहीं कर सका। बुद्ध ने कहा, बुद्धं शरणं गच्छामि। बुद्ध की शरण जाओ। नाम तो उनका सिद्धार्थ था, पर लोगों ने उनका नाम बुद्ध दे दिया। बुद्ध माने बुद्धि के देवता, विचारों के देवता, क्रान्ति के देवता। उस जमाने में उन्होंने जो गदर किया था, क्रान्ति की थी, आपका यह मिशन उसी का अनुगमन करता है। धर्मचक्र प्रवर्तन उनका उद्देश्य था। विचार क्रान्ति अभियान हमारा उद्देश्य है। दोनों में पूर्ण संगति और तालमेल है। वह पूर्वार्द्ध था और ये उत्तरार्द्ध है। उन्होंने सारे एशिया में बहुत भारी परिवर्तन किया था और अब युग निर्माण योजना अंत में बहुत बढ़िया और शानदार क्रान्ति के लिए कटिबद्ध हुई है। धर्मचक्र प्रवर्तन और युग निर्माण क्रान्ति की संगति मिलाकर मैं एक लेखमाला बना रहा हूँ। अभी तीन-चार लेख लिख लिए है। चार-पाँच और लेख लिखने अभी बाकी है। इनको आप पढ़िए कि बुद्ध की क्रान्ति और आपकी आज की क्रान्ति में कितना साम्य है। दोनों ने किस तरीके से एक ही सिद्धान्त का अनुकरण किया है। दोनों की कार्यपद्धति में कैसी एकरूपता है।

क्रान्ति का मूल : तप

भगवान बुद्ध ने अपने समय में समय के प्रवाह को बदलने के लिए प्रयत्न किया था। यह प्रयत्न उन्होंने किसके माध्यम से किया था? प्रचारकों के द्वारा। उनके पास प्रचारकों की सेना रहती थी। तो क्या सेना पंडितों की थी या उपदेशकों की? नहीं भाई! तपस्वियों की थी। तपस्वियों की सामर्थ्य असीमित होती है। सामर्थ्य की दृष्टि से एक ही व्यक्ति सम्पन्न हो सकता है और उसका नाम है तपस्वी। लेकिन संसार की दृष्टि में वही व्यक्ति बलवान हो सकता है, जिसके हाथ में या तो पैसा हो अथवा बन्दूक। चीनी नेता माओ कहते थे क्रान्ति या ताकत बन्दूक की नली में से निकलती है। माओ की ठीक बात भी ठीक हो सकती है। क्या पता, ताकत बन्दूक की नली से निकलती होगी? लेकिन जिसको हम आध्यात्मिक ताकत कहते है। उसे आध्यात्मिकता की शक्ति को यदि आप स्वीकार करते हो तो मैं यह कहता हूँ कि यह ताकत एक ही जगह से निकलती है और उसका नाम है तपश्चर्या। तपश्चर्या के अलावा वह कही से नहीं निकलती है और न निकल सकती है। गुरुजी और ये भजन-पूजन? बेटे ये तो उसके शृंगार है। जिस तरह बन्दूक की, तलवार की मूठ तरह तरह की होती है म्यान तरह-तरह के होते है। कोई मखमल के म्यान होते है। कोई मूठ किसी चीज की बनी होती है। कोई सोने की बनी होती है। किसी में हीरे के नग जुड़े हुए होते है। तरह-तरह के शृंगार होते है और उनके अनुसार तलवार की कीमत ज्यादा हो जाती है। हम जानते है कि किसी जमाने में बादशाह की तलवारें बहुत अच्छी और कीमती होती थी। ये शृंगार के कारण थी। इसी तरह मंत्र आपके शृंगार है। जप आपके शृंगार है। पूजा आपके शृंगार है। शक्ति के स्त्रोत नहीं है। अगर ये शक्ति के स्त्रोत रहे होते तो पंडितों के पास तो अब तक कब की ताकत आ गई होती। पंडित तो सारे देवी-देवताओं का पाठ करना जानते है। आप नहीं जानते, आपको देवी का, चंडी का पाठ करना नहीं आता। परन्तु पंडित जी को आता है। पंडित जी श्लोक बोलना ठीक से जानते है। आपको नहीं आता। अगर इसके साथ तप भी जुड़ा होता ता, अब तक पंडित अमीर हो गये होते, अगर इनके कर्मकाण्ड में ताकत रही होती।

तप से उत्पन्न होती है विद्या

मित्रो! कर्मकांडों में ताकत नहीं है। ताकत वहाँ होती है, जहाँ पर अपने आप को तपाने के बाद में आदमी शक्ति का उदय करते है। हमने आपको शृंगी ऋषि का किस्सा बताया था और कितनों का किस्सा बताया था। ऋषियों के पास किसकी महत्ता थी, क्या महत्ता थी बताइए? विद्वान थे, किताब पढ़े थे? नहीं पढ़े थे वहाँ तक जहाँ तक हम लोग पढ़े हैं। क्या वे लोग इतने ही ज्ञानी थे, जितने कि हम लोग विद्वान है? आज के पीएचडी के ज्ञान का मुकाबला प्राचीनकाल के विद्वान से कैसे किया जाए? बेटे, प्राचीनकाल में एक-एक ऋषि एक-एक विषय में पारंगत होता था। विश्वामित्र जी ने एक विषय में पारंगतता हासिल की थी और वह थी गायत्री। गायत्री में पीएचडी थे विश्वामित्र जी। आज हम सारे-के सारे तीस हजार वेद के मंत्रों का व्याख्यान कर सकते है। इस जमाने में शिक्षा ज्यादा है। उस जमाने में शिक्षा की वजह से एग्जाम परीक्षा नहीं होती थी, वरन् तपश्चर्या की वजह से एग्जामिनेशन होते थे। ऋषियों की महत्ता, ऋषियों की गरिमा, ऋषियों का गौरव इस बात पर टिका हुआ था कि उन्होंने अपने जीवन में तपश्चर्या को किस मात्रा में ग्रहण किया था। साथियों! मैं आपसे यह निवेदन कर रहा था कि आपके जीवन में तपश्चर्या के लिए स्थान मिले। अगर आप स्वीकार करें कि हम तपस्वी जीवन जीएंगे, तब क्या हो जायेगा? तब आपका बहिरंग जीवन जो पंचतत्वों का बना हुआ है, जो पदार्थों से सम्बन्धित है, जो दुनिया से सम्बन्धित है और उसे प्रभावित करता है, उसे प्रभावित करने के लिए आप तपश्चर्या के माध्यम से शिक्षित कर सकते है और श्रद्धालु बनने के बाद में अगर आप में सामर्थ्य है तो भगवान को भी अपनी सहायता करने के लिए मजबूर कर सकता है। मजबूर शब्द? हाँ बेटे, इसके अलावा और कोई शब्द मेरे पास नहीं है।

आप भगवान से दया की बात करते हैं कि भगवान बड़े दयालु हैं कृपालु हैं। अगर भगवान दयालु है कृपालु है। तो मैं यह सोचता हूँ कि मय्यत में जाकर के मैं बैठूँ और सवेरे से शाम तक भगवान की दयालुता की पोल खोलता जाऊँ। मरघट में आप जाइए और भगवान की पोल खोलते जाइए ये कौन मर गया? जवान आदमी मर गया। उसकी माँ बिलख रही है। उसके बच्चे बिलख रहे हैं। औरत बिलख रही है। यह कैसे हो गया? यह किसने मार डाला? भगवान ने। भगवान को आप गाली देंगे। आप अस्पताल होकर आइए और देखिए कि भगवान कितना दयालु है। वहाँ कितने आदमियों की आंखें फोड़ी जा रही हैं। कितनों के हाथ काटे जा रहे हैं। कितनों का क्या किया जा रहा है। ये कौन कर रहा है? भगवान कर रहा है। तो भगवान को गाली दें? नहीं, मैं गाली नहीं दे सकता, आप गाली दीजिए। तो फिर आप क्या कहेंगे? बेटे, इसे मैं केवल न्यायाधीश कह सकता हूँ।

कायदे-कानून वाला भगवान

गुरुजी! आप भगवान को न्यायाधीश क्यों कहते हैं? बेटे, मैं न्यायाधीश इसलिए कहता हूँ कि बिजली के तरीके से भगवान के कुछ कायदे और कानून है। बिजली के कायदे और कानून का हम पालन करते है तो वह पंखा चलाती है बत्ती जलाती है हमारा रेफ्रिजरेटर चलाती है। हर चीज चलाती है। भगवान भी बड़े दयालु है। बिजली के तरीके से। बिजली हमारी बहुत सेवा करती है। बिजली हमारे कमरे को गरम करती है। बिजली हमारे कमरे को ठंडा भी कर देती है। हमें टेलीविजन दिखा देती है। हमारा रेडियो चला देती है। बिजली हमारे कुएँ में से पानी निकाल कर लाती है। बिजली जितनी सेवा कर सकती है, उतनी दस नौकर भी नहीं कर सकते। बिजली रातभर हमारे ऊपर पंखा झलती है। बेटे, वह बड़ी दयालु है। इससे बड़ा दयालु और कौन हो सकता है। माता और नौकर भी रातभर पंखा नहीं झल सकते। नौकर को भी नींद आ जाती है। कभी हाथ धीमा चलाता है तो कभी तेज चलाता है लेकिन बिजली आपका पंखा बिना रुके एक स्पीड से चलाती रहेगी। एक दिन चलवाइए, दो दिन चलवाइए, वह बिना थे चलाती रहेगी। इससे बड़ा दयालु और कोई हो सकता है क्या? नहीं बेटे, बिजली से बड़ा दयालु कोई नहीं हो सकता। इसलिए उसे दयालु कहने में हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मित्रो! आपको मालूम होना चाहिए कि बिजली बड़ी खौफनाक और खतरनाक भी है। अगर आप बिजली का गलत तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो वह आपको मार डालेगी, आपके बच्चे को मार डालेगी, आपकी औरत को मार डालेगी। सब चीजें बरबाद हो जाएँगी। अरे साहब! आप तो दयालु हैं। नहीं भाईसाहब। हम दयालु नहीं है तो आप क्या है? नियम है मर्यादा है कायदा है और कानून है। अगर यह बात आप मान लेंगे तो आगे चलेंगे। आप यदि नहीं मानते रहेंगे कि भगवान को फुसलाकर फुसलाने के चक्कर में फँस रहेंगे तो फुसलाइए। अच्छा आप भगवान को फुसलाकर क्या करेंगे? अपना उल्लू सीधा करेंगे। उल्लू सीधा करने किसे कहते है? जो हमारी उचित और अनुचित माँगों को पूरा कर दे, जो हम माँगे, वह लाकर दे दे, वह उल्लू है। बेटे, ये विचार आप मन से निकाल दे। यदि यही विचार अपने मन में भरे रहेंगे तो आप आध्यात्मिकता से बहुत दूर बने रहेंगे। आध्यात्मिकता भी आपसे बहुत दूर रहेगी, क्योंकि आप आध्यात्मिकता के सिद्धान्तों को नहीं जानते। आप भगवान के सिद्धान्तों को नहीं जानते। भगवान को सहायता करने के लिए मकबूल किया जा सकता है पंखा झलने के लिए। अपने आप बिजली पंखा नहीं चला देगी। पहले हमें बिजली का बटन दबाना पड़ता है। इसी तरह तपश्चर्या द्वारा भगवान को मकबूल करना पड़ता है। तपश्चर्या करना आपको स्वीकार न हो तो फिर आप यह उम्मीद मत रखिए कि भगवान दयालु है देवता दयालु है अमुक दयालु है। इसलिए दयालुता के वशीभूत होकर के आपकी सहायता करेंगे। बेटे ऐसी सहायता आपको नहीं मिलेगी। आप लिख लीजिए, यदि इस तरह से सहायता मिल जाए तो हमसे कहना। (क्रमशः अगले अंक में)


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