रामानुजाचार्य को उनके गुरु ने कई विद्या सिखाई। ज्ञानदीक्षा संपन्न करते हुए उनके आचार्य ने कहा “रामानुज, नीच जाति के लोगों को यह ज्ञान मत देना।” इस पर रामानुज बोले, गुरुदेव! जिसका गिरे हुओं को उठाने में उपयोग न हो, वह शिक्षा मुझे नहीं चाहिए।” शिष्य की विशाल भावना देखते हुए आचार्य ने स्वेच्छा से उसके उपयोग करने की स्वीकृति दे दी।