मेरा सच्चा भक्त है, सुपात्र है (kahani)

November 2003

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

भिक्षु आनंद ने पूछा, “भगवान! आप प्रव्रज्या हेतु विश्वभर में दूत भेज रहे हैं, पर उनके पास साधन तो हैं ही नहीं। वे कैसे रहेंगे, किस प्रकार धर्मधारणा का प्रसार कर पाएँगे? यह प्रश्न मेरे मन में अभी भी विद्यमान है।”

तथागत कह उठे, “भदंत! ये दूत एक विशिष्ट संपत्ति अपने साथ लेकर जा रहे हैं, जो ईश्वरप्रदत्त है। अपनी इंद्रियसंयम, समयसंयम, विचारशक्ति रूपी विभूति के माध्यम से ये पुरुषार्थ द्वारा जहां जाएँगे, जनसहयोग, साधन-संपदा तथा श्रद्धा अर्जित करेंगे और विश्वभर में विचार-क्राँति के अग्रदूतों के रूप में फैल जाएँगे। यथार्थ संपदा वही है, जो ये ले जा रहे हैं, चौथी तो इनकी परिणति है।”

देवमंदिर में शिवरात्रि के दिन एक सोने का थाल उतरा। आकाशवाणी हुई कि सच्चे भक्त को ही थाल मिलेगा। काशीराज ने ढिंढोरा पिटवाकर अपनी भक्ति की परीक्षा देने के लिए आह्ममडडडड किया।

सर्वप्रथम एक पुजारी आगे बढ़े। उन्होंने कहा, “मैंने सच्चे मन से ईश्वर की उपासना की है। इसलिए थाल का अधिकारी मैं हूँ।” राजा ने थाल पुजारी को दिया। हाथ में लेते ही सोने का थाल पीतल का हो गया। पुजारी ग्लानि से भर उठे और एक किनारे हट गए। पुनः थाल सोने का हो गया। तत्पश्चात् एक तपस्वी पहुँचे। उन्होंने अपने योग-तप की दुहाई दी, पर थाल उनके हाथ में भी लेते ही पीतल का हो गया।

उसी समय एक किसान भी देवदर्शन के लिए दूर स्थान से पहुँचा। ईश्वर के प्रति उसकी अटूट निष्ठा थी। जितना समय मिलता, परमात्मा का नाम ले लेता। बाकी समय में पूरे परिश्रम से कृषि करता। किसी तरह उसने थोड़े पैसे बचाए। शिवरात्रि के दिन देवमंदिर के दर्शन के लिए आ रहा था। एक गठरी में थोड़ा-सा सत्तू बँधा था। रास्ते में भूख-प्यास से तड़पता, रुग्ण एक मनुष्य पड़ा था। उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा था। सोने का थाल प्राप्त करने की आतुरता में भीड़ उसी ओर चली जा रही थी। किसान ने तड़पते व्यक्ति को उठाया, पानी पिलाया और सत्तू खिलाकर उसकी क्षुधा मिटाई। निकटवर्ती एक धर्मशाला के संचालन को सुपुर्द करके मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचा। किसान का पहुँचना था कि सोने का थाल काशी नरेश के हाथों से चला और किसान के हाथों में आ गया। सब सचाई देखने लगे। आकाशवाणी हुई कि “जो आत्म सामर्थ्य का सही उपयोग करता है, वही मेरा सच्चा भक्त है, सुपात्र है।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118