शीत रोगों एवं श्वास संबंधी बीमारियों में अतीस का सेवन करना अत्यंत लाभकारी पाया गया है। अतीस क्रॉनिक या एलर्जिक ब्रोन्काइटिस में तो लाभकारी है ही, साथ ही साथ निमोनिया, टी बी, अरधमा, सरदी-जुकाम, हड्डी या जोड़ों का दर्द, गाँठों में दर्द एवं सूजन में भी दूसरी दवाइयों के साथ देने से शीघ्र लाभ पहुँचाती है। इसे आधी रत्ती से आरंभ करके 1 रत्ती एक नित्य सुबह-शाम जल या शहद से साथ रोगी व्यक्ति को खिलाना चाहिए।
अतीस शुद्ध होगी चाहिए। अतीस को शोधित करने के लिए उसे गोमूत्र में 24 घंटे के लिए भिगो देते हैं, तदुपराँत 24-24 घंटे के अंतराल से उसे दूसरी एवं तीसरी बार ताजे गोमूत्र में डालते रहते हैं। इस तरह 72 घंटे तक गोमूत्र में भिगोने के बाद उसे सुखाकर, कूट-पीसकर पाउडर बना लेते हैं और इसी शुद्ध अतीस को दवा के रूप में प्रयुक्त करते हैं।