कंकाल के समान पेड़ में लगी रही (kahani)

November 2003

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पेड़ का मालिक पके आमों की खोज बीन करने वृक्ष पर चढ़ा भी,पर आम पत्तों की झुरमुट में ऐसा छिपा कि हाथ आया ही नहीं। दूसरे दिन उसने देखा कि उसके सब पड़ोसी जा चुके, उसका अकेले ही रहने का मोह नहीं टूटा था। अब मित्रों की विरह व्यथा और सताने लगी। आम कभी तो सोचता नीचे कूद जाऊँ और अपने मित्रों से जा मिलूँ, फिर उसे मोह अपनी ओर खींचता, आम इसी उधेड़ बुन में पड़ा रहा।

संशय का यही कीड़ा धीरे धीरे फल को खाने लगा और एक दिन उसका सारा रस समाप्त हो गया। मात्र सूखी बोंडी नर कंकाल के समान पेड़ में लगी रही।


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