एक बार महात्मा बुद्ध के पास एक धनपति आए। वैभव का साम्राज्य चारों ओर था, पर वे अंदर से एक बहुत बड़ा अभाव अनुभव करते। अपनी यही व्यथा उन्होंने भगवान बुद्ध को सुनाई। भगवान बुद्ध ने कहा, आपने जीवन में कर्म व श्रम को तो महत्व दिया, पर भावना को नहीं। सत्संग-कयाश्रवणडडडड इत्यादि से तो विचारों को पोषण भर मिलता है। अंदर की शुष्कता कम करने के लिए सबको स्नेह दीजिए, अनाथों, निर्धनों के बीच जाइए, उन्हें स्वावलंबी बन सकने योग्य सहायता दीजिए, अपना शरीर-श्रम भी जितना इस पुण्य कार्य में लगा सकें, लगाइए। फिर देखिए, आपकी भूख भी लौट आएगी तथा नित्य चैन की नींद सोएँगे। सेठ जी ने ऐसा ही किया व चमत्कारी परिवर्तन ने उन्हें जो शाँति-प्रसन्नता दी, वह पहले कभी मिली नहीं थी।