परमार्थ द्वारा उसे पाटने लगा (kahani)

November 2003

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक संत आर्त-भाव से प्रभु की शरण में जाने के सत्परिणाम एवं दुष्कर्मों की परिणति प्रतिफल की चर्चा कर रहे थे। श्रोताओं में ही एक डाकू भी बैठा था, जिसने कथा के तुरंत बाद पंडित जी तथा आए हुए वैभवसंपन्न श्रोताओं को लूटने की योजना बनाई थी। अनायास ही उसने अजामिल, गणिका, तुलसीदास, विल्वमंगल का जीवन बदलने व तरने की चर्चा सुनी तो वह अंदर तक हिल गया। जिन मार्मिक शब्दों में ये कथाएँ सुनाई गई थी, उन शब्दों ने उसे अपने दुष्कर्मों पर चिंतन व पश्चाताप करने को प्रेरित किया। कथा समाप्ति के तुरंत बाद वह पंडित जी के चरणों में गिर गया, अपने विगत पापोँ की जानकारी कराई व आगे के लिए जीवन सुधारने की दिशा पूछी। उन निर्देशों ने उसका जीवन बदल दिया। तदुपराँत वह प्रभुनारायण जीवन बिताने व जो पापों की खाई उसने खोदी थी, सेवा परमार्थ द्वारा उसे पाटने लगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118