नादानी पर क्षमा माँगी (kahani)

November 2003

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पिता के पुत्र को खेती करने को कहा। कई दिन बाद पूछा, “बेटा! तेरी खेती का क्या हुआ?” बालक ने उत्तर दिया, “खूब लहलहा रही है पिताजी। मैंने सत्कर्म का हल चलाया, उसमें ईश-भजन के बीज बोए, सत्संग की खाद और संतोष के जल सींचा है, अब सर्वत्र आनंद का अन्न उग रहा है।” उत्तर सुनकर पिता अवाक् रह गया। धर्म की खेती करने वाला यही बालक आगे चलकर ‘नानक’ हुआ।

संत ज्ञानेश्वर के किशोरकाल की घटना है। जब वे अपने भाई-बहनों सहित अपने गाँव पहुँचे तो पुरातनपंथी पंडितों द्वारा उनके पिता के संन्यास धर्म त्यागने व गृहस्थ स्वीकार करने पर काफी धिक्कारा गया, उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। वे अपनी पवित्रता का परिचय उन्हें देते, इसी बीच एक व्यक्ति वहाँ से एक भैंसे को कोड़ों से मारते निकला। पंडितों ने साश्चर्य देखा कि कोड़ों के निशान संत की पीठ पर उभर आए थे। उनके यह कहने पर कि ईश्वर सब में निवास करता है और भैंसे की ओर उन्मुख होते ही उसके मुँह से वेदमंत्र निकलने लगे। यह सब देखकर विश्वसत्ता का ही एक स्वरूप संत ज्ञानेश्वर को मान पंडितगण उनके चरणों पर गिर गए व अपनी नादानी पर क्षमा माँगी।


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