सम्पदा वाले मार्ग (Kahani)

August 1991

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बीमारियों को एक बार भगवान धन्वंतरि का सामना करना पड़ा। उनके पैर उखड़ गये। और तीखे प्रहार से बचने के लिए वे एक पर्वत पर जा छिपीं। आखिर उन्हें ढूँढ़ ही लिया गया। जिज्ञासुओं ने पाया कि उस पहाड़ पर अनेक बीमारियों का निवास होते हुए भी उस क्षेत्र के निवासी पूर्ण निरोगी हैं। यह भी आश्चर्य का विषय था, सो कारण जानने के लिए वहाँ के निवासियों से पूछताछ की गई। पर्वत पर बसने वालों ने कहा बीमारियाँ हम लोगों पर आक्रमण तो करती हैं पर हम लोग यहाँ पहाड़ पर कठोर श्रम में निरत रहते हैं। पसीने के साथ बीमारियाँ बह कर बाहर निकल जाती हैं। परिश्रमी बीमार नहीं पड़ते।

इस वैभव सम्पदा वाले मार्ग के अतिरिक्त दूसरा मार्ग है अध्यात्म तत्वज्ञान के अवलम्बन का। उसे अपनाने पर मनुष्य को नीति और सदाचार का आश्रय लेना पड़ता है। संतोषी और दूरदर्शी बनना पड़ता है। संतोषी इस अर्थ में कि दूसरे लोग जिन महत्वाकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए बुरी तरह मरते खटते हैं उन्हें छोड़ना पड़ता है। नीति मार्ग पर चलते हुए मनुष्य सीमित साधनों से ही काम चलाता है। अन्यान्य लोगों को अनीति की कमाई से गुलछर्रे उड़ाते देखकर मन को विचलित नहीं होने देता। सोचता है मानवी गरिमा गिरा कर यदि बड़प्पन का मन भावना खिलौना बजा भी लिया तो क्या? इससे आत्म संतोष तो नहीं मिला और जो भीतर बेचैनी उद्विग्नता-अशान्ति बनी रही, उसकी बाहरी विडम्बनाएँ किस काम आई?

यही बात ख्याति के सम्बन्ध में भी है। उसकी आयुष्य बहुत छोटी है। एक दो दिनचर्या होती है इसके बाद लोग अपनी निज की समस्याओं में उलझ जाते हैं दूसरों की यशगाथा गाने या निन्दा करने के लिए उनके पास समय ही नहीं बचता। जिस ख्याति के पीछे आज तक अनाचार, छद्म, शोषण छिपा हुआ हो उसकी विचारशील क्षेत्र में कोई कीमत नहीं हो सकती। पाखण्डी धन एवं वैभव जब तब कमा तो लेते है, पर वह आत्म प्रताड़ना, लोक भर्त्सना और दैवी दण्ड से बच नहीं सकते। क्षणिक मनोविनोद के लिए जो भविष्य को अन्धकारमय बना लें, वर्तमान में घृणा का पात्र बनें, उनकी समझदारी को कौन सराहेगा?

वर्तमान ही सब कुछ नहीं है। पहले आक्रमण में तो कमजोर भी नफे में रहते हैं, पछताते तब हैं जब उसकी प्रतिक्रिया लौटकर वापस आती है। मनुष्य जीवन क्षणिक नहीं है वह अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहेगा। इस अवधि में मनुष्य जीवन सबसे महत्वपूर्ण है। इसे जो सृष्टा की बहुमूल्य अमानत समझकर श्रेष्ठतम सदुपयोग करता है, वह भविष्य की लम्बी अवधि को सुख शांतिमय बना लेता है। उसे नरक की यातनाएँ नहीं सहनी पड़ती। साथ ही यह भी निश्चय है कि चौरासी लाख योनि के चक्र में भी भ्रमण नहीं करना पड़ता है। देव जीवन जीने वालों को भव बन्धनों में नहीं बंधना पड़ता और जन्म मरण की यातना से बचकर सूक्ष्म शरीर में निवास करते ही दिव्य जीवन जी सकने का लाभ मिलता है। यह लाभ ऐसे नहीं है जिन्हें सामान्य या तुच्छ कहा जा सके। यह विभूतियां ऐसी नगण्य नहीं हैं कि उनकी उपेक्षा करके धन, वैभव की विडम्बना एकत्रित करने के लिए हेय जीवन अपनाया जाय।

वैभव दूसरों की आँख में चकाचौंध उत्पन्न कर सकता है। उन्हें बड़प्पन के भ्रम से भ्रमित कर सकता है पर वास्तविकता से परिचित आत्मा तो निरन्तर त्रास ही सहती रहती है। अपने द्वारा किये गये अनर्थों और उनके सुनिश्चित, दुःखदायी प्रतिफलों का अनुमान लगाकर निरन्तर बेचैन रहता है, बाहर का ठाट-बाट और भीतर का खोखलापन जिन्हें अच्छा लगता है, उन्हें नासमझ या अदूरदर्शी ही कहना चाहिए।

जीवन की दो दिशाएँ है। एक काली, दूसरी, सफेद। काली दिशा को रात्रि की अंध-तमिस्रा कह सकते है जिसमें बहुत ऊँचाई पर टके हुए तारे ललचाते रहते किन्तु साथ ही हर क्षेत्र में निशाचरों का


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