गौतमी का एक ही पुत्र था। वह बाल्यकाल में ही अचानक मर गया। इकलौते बेटे के न रहने पर उसकी माता को असीम दुख हुआ।
गौतमी मरी लाश को लेकर भगवान बुद्ध के पास पहुँची और उनसे जीवित कर देने की प्रार्थना करने लगी।
साँत्वना, उपदेशों का जब उस पर कोई प्रभाव न पड़ा। विलाप बंद न हुआ। तो तथागत ने उसे एक उपाय करने को कहा। वह जाये और एक मुट्ठी अन्न ऐसे किसी घर से माँग लाये, जिसके वहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो।
गौतमी ने सारा नगर खोज डाला। अन्न देने को तो सभी तैयार थे। पर यह कोई नहीं कहता था कि उनके घर में कोई नहीं मरा।
इस याचना की अवधि में गौतमी सोचती रही कि जब जन्म की नियति मृत्यु है ही, तो मेरा पुत्र ही उसका अपवाद कैसे हो सकता। उसने जैसे ही तथ्य को समझा। वैसे ही उसकी शंका का समाधान हो गया।
वापस लौटी और मृत शरीर का सामान्य रीति से अंत्येष्टि संस्कार कर दिया गया।