धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नहीं, सहयोगी हैं-आग और रोशनी की तरह। जो धर्म, विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, जो विज्ञान धर्म से अनुबंधित नहीं, वह ऐसा है-जैसा प्राण के बिना शरीर।
आयोजन में सम्मिलित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक सत्परिणाम प्रस्तुत करती हैं। उसमें से बड़ी उपलब्धि श्रवणातीत सूक्ष्म ध्वनि तरंगों की है जो शब्द और ताप दोनों के समन्वय से उत्पन्न होती है और उनसे सुविस्तृत क्षेत्र का वातावरण प्रभावित होता है। फलतः प्राणवान पर्जन्य वर्षा से लेकर अन्यान्य कई प्रकार के ऐसे आधार खड़े होते हैं जो सर्वतोमुखी सुख-शान्ति में सहायता कर सकें। सूक्ष्म वातावरण के परिशोधन और उसके फलस्वरूप सुख-शान्ति की परिस्थितियाँ उत्पन्न करने वाले वातावरण का सृजन भी मंत्र विद्या और यज्ञ विज्ञान की समन्वित प्रक्रिया का अति महत्वपूर्ण प्रतिफल है। व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अभीष्ट शक्ति का उत्पादन जप-अनुष्ठान के साथ यज्ञ का समावेश करने पर ही होता है। इन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए भारतीय धर्म में यज्ञ को उच्चकोटि का श्रेय-सम्मान दिया गया है।