सम्पन्नता और सादगी का समन्वय (Kahani)

August 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सेठ जमनालाल बजाज वर्धा के प्रख्यात उद्योगपति थे। कारोबार की देखभाल करते हुए भी वे गाँधी जी के पाँचवे पुत्र थे और उनके निर्देशों पर अपनी गतिविधियाँ विनिर्मित करते रहे। उन्होंने गाँधीवादी प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने के लिए साधन जुटाने में प्राणपण से प्रयत्न किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए वे सम्पन्न लोगों से लाखों की राशि एकत्रित करने में सफल होते रहे। गाँधी जी मजाक में उन्हें कामधेनु कहते थे।

श्री बजाज ने जो कमाया उसे मुक्त हस्त से सार्वजनिक प्रवृत्तियों को सींचने में खर्च किया।

सम्पन्नता और सादगी का समन्वय देखते ही बनता था। जेल में उन्हें उच्च श्रेणी दी गई तो भी उन्होंने अस्वीकार करके साधारण सत्याग्रहियों की तीसरी श्रेणी में ही स्थानान्तरण करा लिया।

गुरु व शिष्य की आत्मा में भी परस्पर ब्याह होता है, दोनों एक दूसरे से घुल−मिल कर एक हो जाते हैं। समर्पण का अर्थ है दो का अस्तित्व मिट कर एक हो जाना। तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो व अपनी क्षुद्र महत्वाकाँक्षाओं को हमारी अनंत आध्यात्मिक महत्वाकाँक्षाओं में विलीन कर दो। जिसका अहं जिन्दा है, वह वेश्या है। जिसका अहं मिट गया, वह पतिव्रता है। देखना है कि हमारी भुजा, आँख, मस्तिष्क बनने के लिए तुम कितना अपने अहं को गला पाते हो। इसके लिए निरहंकारी बनो, स्वाभिमानी तो होना चाहिए पर निरहंकारी बनकर। निरहंकारी का प्रथम चिह्न है वाणी की मिठास।

वाणी व्यक्तित्व का प्रमुख हथियार है। सामने वाले पर वार करना हो तो तलवार नहीं, कलाई नहीं, हिम्मत की पूछ होती है। हिम्मत न हो, तो हाथ में तलवार हो भी तो बेकार है। यदि वाणी सही है तो तुम्हारा व्यक्तित्व जीवन्त हो जाएगा, बोलने लगेगा व सामने वाले को अपना बना लेगा। अपनी विनम्रता, दूसरों का सम्मान व बोलने में मिठास यही व्यक्तित्व के प्रमुख हथियार हैं। इनका सही उपयोग करोगे तो व्यक्तित्व वजनदार बनेगा।

तुम्हीं को कुम्हार व तुम्हीं को चाक बनना है। हमने तो अनगढ़ सोना-चाँदी ढेरों लाकर रख दिया है, तुम्हीं को साँचा बनाकर सही सिक्के ढालना है। साँचा सही होगा तो सिक्के भी ठीक आकार के बनेंगे। आज दुनिया में पार्टियाँ तो बहुत हैं पर किसी के पास कार्यकर्ता नहीं हैं। ‘लेवर’ सबके पास है पर समर्पित कार्यकर्ता जो साँचा बनता है व कई को बना देता है, अपने जैसा, कहीं भी नहीं। हमारी यह दिली ख्वाहिश है कि हम अपने पीछे कार्यकर्ता छोड़ कर जाएं, इन सभी को सही अर्थों में ‘डाई’ एक साँचा बनना पड़ेगा तथा वही सबसे मुश्किल काम है। रॉमेटिरियल तो ढेरों कहीं भी मिल सकता है पर “डाई” कहीं-कहीं मिल पाती है। श्रेष्ठ कार्यकर्ता श्रेष्ठतम “डाई” बनाता है। तुम सबसे अपेक्षा है कि अपने गुरु की तरह एक श्रेष्ठ साँचा बनोगे।

तुमसे दो और अपेक्षा। एक श्रम का सम्मान। यह भौतिक जगत का देवता है। मोती हीरे श्रम से ही निकले हैं। दूसरी अपेक्षा यह कि सेवा बुद्धि के विकास के लिए सहकारिता का अभ्यास। संगठन शक्ति सहकारिता से ही पहले भी बढ़ी है, आगे भी इसी से बढ़ेगी।

हमारे राष्ट्र का दुर्भाग्य यह कि श्रम की महत्ता हमने समझी नहीं। श्रम का माद्दा इस सब में असीम है। हमने कभी उसका मूल्याँकन किया नहीं। हमारा जीवन निरन्तर श्रम का ही परिणाम है। बीस-बीस घण्टे तन्मयतापूर्वक श्रम हमने किया है। तुम भी कभी श्रम की उपेक्षा मत करना। मालिक बारह घण्टे काम करता है, नौकर आठ घंटे तथा चोर चार घंटे। तुम सब अपने आप से पूछो कि हम तीनों में से क्या हैं। जीभ चलाने के साथ कठोर परिश्रम करो, अपनी योग्यताएँ बढ़ाओ व निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ।

दूसरी बात सहकारिता की। इसी को पुण्य परमार्थ, सेवा उदारता कहते हैं। अपना मन सभी से मिलाओ। मिलजुल कर रहना, अपना सुख बाँटना, दुःख बँटाना सीखो। यही सही, अर्थों में ब्राह्मणत्व की साधना है। साधु तुम अभी बने नहीं हो। मन से ब्राह्मणत्व की साधना करोगे तो पहले ब्राह्मण बनो। साधु अपने आप बन जाओगे। पीले कपड़े पहनते हो कि नहीं, पर मन को पीला कर लो। सेवा बुद्धि का, दूसरों के प्रति पीड़ा का, भावसंवेदना का विकास करना ही साधुता को जगाना है। आज इस वर्ष श्रावणी


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118