टिड्डे बरसात में हरे हो जाते हैं और गर्मी में पीले। इसका कारण किसी छात्र ने अपने अध्यापक से पूछा। शिक्षक ने समझाया कि बरसात का वातावरण हरा रहता है। उसका प्रभाव से टिड्डे का रंग भी अपने अनुरूप बना लेता है। गर्मी के दिनों में सब कुछ सूखा रहता है। सूखापन पीला होता है। उसी के अनुरूप टिड्डे भी पीले पड़ जाते हैं। जो व्यक्ति जैसे वातावरण में रहता है वह भी वैसा ही ढल जाता है।
सात्विकता को भी भावनाओं का सम्पुट देकर आत्मिक चेतना के उत्कर्ष में अधिक सहायता दे सकने योग्य बनाया जाय। भगवान का भोग, प्रसाद, पूजा के समय प्रयुक्त नैवेद्य और जल, पंचामृत, यज्ञाग्नि में पकाया गया चरु द्रव्य इसी प्रकार के पदार्थ हैं, जिनकी स्थूल विशेषता न दिखाई देने पर भी उनका सूक्ष्म सामर्थ्य बहुत अधिक होता है। आहार न केवल स्थूल दृष्टि से पौष्टिक, स्वल्प और सात्विक होना चाहिए, वरन् उसके पीछे न्यायानुकूल उपार्जन और सद्भावनाओं का समावेश भी होना चाहिए, तभी वह अन्न मनुष्य के तीनों आवरणों को पोषित कर सकेगा और स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण शरीर को विकसित कर सकेगा। तभी वह शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वांगीण विकास कर सकेगा।