एक सेठ के पास बहुत सा सोना चाँदी था। वे उसे जंगल में कहीं गाढ़ते। फिर कुछ दिन बाद देखने जाते। किसी ने निकाल तो नहीं लिया, यह जाँचते। किसी ने देख लिया होगा तो उखाड़ लेगा। यह सोच कर उसे जगह बदल कर अन्यत्र गाढ़ देते। बार बार ऐसी ही उलट पलट किया करते।
सेठ जी की गतिविधियों को एक चोर संदेह की दृष्टि से देखा करता था। एक बार उसने चुपके चुपके पीछा किया। जब धनी खड़ा होने लगा तो चोर पेड़ पर चढ़ कर उनकी हरकतें देखने लगा। उसे पता लग गया कि यहाँ धन गाड़ा जा रहा है।
सेठ जी के चले जाने के बाद अँधेरा होते ही चोर ने सारा धन उखाड़ लिया और घर ले गया। कई दिन बाद वे अपने धन की निगरानी करने गये। देखा तो पता चला कि कोई सारी सम्पदा उखाड़ ले गया। वे सिर धुनते-धुनते घर गये और दरवाजे पर बैठ कर जोर-जोर से रोने लगे।
मुहल्ले वाले जमा हो गये। बहुत पूछने पर उन्होंने बताया कि किसी प्रकार उनकी दौलत चुरा ली गई।
एक मसखरे ने व्यंग करते हुए कहा लालाजी जमीन में गढ़ा धन आपके या और किसी के काम तो आता नहीं था। बेकार पड़ा था। चोर ले गया तो उसे किसी काम में लायेगा।
जो धन जेवर आदि के रूप में निरर्थक पड़ा रहता है। जिसका कोई उपयोग नहीं होता उसे यदि चोर ले जाय तो क्या बुरा है?