यही दुर्गति होती है (Kahani)

August 1991

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एक सरोवर में हंस भी रहते थे और कछुआ भी। एक बार वर्षा नहीं हुई। सरोवर सूख गया। हंस उड़कर अन्यत्र जाने लगे। कछुए ने कहा मित्र इतने दिन साथ रहने की मित्रता निबाही। जहाँ आप जाते हो वहाँ हमें भी ले चलो अन्यथा प्यासे मर जायेंगे।

हंसों को दया आई उन्होंने साथ ले चलने का एक उपाय निकाला। दोनों ने अपनी चोंचों में मजबूती से एक लकड़ी पकड़ ली कछुए से कहा लकड़ी को मुँह से दबाओ और नीचे लटक जाओ इस प्रकार हम तीनों दूसरे सरोवर में पहुँचेंगे।

रास्ते में एक गाँव पड़ा। तीन को उड़ता देखकर बच्चे हल्ला मचाने लगे देखो कछुआ उड़ रहा है। कछुआ मौन न रह सका वस्तुस्थिति बताने के लिए आतुर हो उठा। बोला मैंने तो लकड़ी भर पकड़ रखी है।

बात पूरी भी न कह पाया मुँह खुला और नीचे गिर कर चूर-चूर हो गया। अनावश्यक बाते करने वाले की यही दुर्गति होती है।


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