संग्रह के लिए मत ललचाओ। विभूतियों को इस हाथ से उस हाथ जाने दो। परिग्रह का बोझ जितना ही बढ़ता है (मनुष्य उचित को सोचने और करने में असमर्थ हो जाता है।)
“भारी नहीं है बाबा!” लड़की ने महात्मा को चिढ़ाने वाली बात कहकर कहा-यह मेरा भाई है, देखते नहीं? इसके साथ अठखेली करने में कितना आनन्द आता है। यह कह कर बालिका ने शिशु के कोमल कपोल चूमे और एक नव-स्फूर्ति अनुभव करती हुई फिर चढ़ाई चढ़ने लगी।
महात्मा जी ने अनुभव किया यदि भगवान को प्राप्त करने की साधना कठोर और कष्टपूर्ण लगती है तो यह दोष भगवान का नहीं, जीवन नीति का है। वस्तुतः कठिन कर्तव्य और कठिनाईयों से भरे जीवन में भी मस्ती का आनन्द लिया जा सकता है। यही नहीं व्यक्तित्व के निर्माण और पूर्णता का लाभ भी इसी तरह हँसते-थिरकते प्राप्त किया जा सकता है, अपने जीवन में इस सत्य की गहन अनुभूति के बाद। तभी तो प्रसिद्ध वैज्ञानिक जूलियन हक्सले ने लिखा है व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए जीवन में प्रेम का आरोपण बहुत जरूरी है।