प्रेम अन्तःकरण की ऐसी उपज है जो शुष्क-से शुष्क, कठोर से कठोर और कितने ही दिशा भ्राँत जीवन को सरस, सरल और प्रकाशवान बना देती है। प्रेम से मधुर संसार में और कुछ नहीं। जब ऐसे दो प्राणी मिलते हैं तो आनन्द की त्रिवेणी प्रवाहित होने लगती है चुम्बक के दोनों ध्रुव दो विपरीत दिशाओं में अनंतकाल से जुड़ें हैं पर उन दोनों का एक ही प्रयत्न है। पुनः मिलन का प्रयत्न अनादि काल से दोनों ध्रुवों की धारायें एक-दूसरे को आकर्षित करने में लगी हैं। जीवन की प्रत्येक सूक्ष्म सत्तायें अलग-अलग होकर भी अपने प्रेमी के प्रति अद्यतन समर्पित होकर इस सिद्धाँत की पुष्टि करती हैं कि विरह में भी प्रेम निखरता है, कम नहीं होता।
अविश्वास को विश्वास में, निन्दा को प्रशंसा में, तर्क-वितर्क को निष्ठ और औद्धत्य को सेवा में बदल देने, की शक्ति केवल प्रेम में ही नहीं है। प्रेमी कभी आलस्य में घिरा बैठा रहे, ऐसा हो ही नहीं सकता। अपने प्रेमास्पद की कितनी इच्छायें कहीं चुपचाप बैठे पूरी होती हैं? नहीं तो फिर दोनों ही सक्रिय होते हैं, कुछ न कुछ जुटाते है और एक दूसरे को देते हैं। परस्पर आदान-प्रदान की यह धारा ही तो समस्त चेतना का आधार है। सृष्टि में प्राण व जीवन प्रेम के ही कारण विद्यमान है।
एक मन्दिर पहाड़ की चोटी पर था। फिर भी दर्शनार्थी ऊपर जा रहे थे दर्शन करना अवश्य है इसलिये लोग बराबर चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे। एक महात्माजी भी थे, वह भी भगवान की मूर्ति के दर्शनों के लिए ऊँची-नीची घाटी चढ़ते जा रहे थे, पर थकावट के कारण उनका बुरा हाल था, इतनी चढ़ाई कैसे पार होगी यह वे समझ नहीं पा रहे थे। बार-बार थक कर बैठ जाते थे। भगवान के मिलन में आनन्द है तो उसकी साधना में आनन्द क्यों नहीं? उनके मन में एक तर्क उठा। इस तर्क ने उनका मन ढीला कर दिया।
पीछे मुड़कर देखा तो एक आठ नौ वर्षीय बालिका भी पहाड़ की चढ़ाई चढ़ रही थी। उसकी पीठ पर दो वर्ष का एक बालक था, तो भी उसके मुख-मण्डल पर थकावट का कोई चिन्ह नहीं था। हँस-मुख बालिका कभी बच्चे को थपथपाती, चूमती, चाटती और कभी नाराज सी होकर उससे बातचीत करती। बच्चा उसे शिकायत वाली मुद्रा में देखता तो बालिका कहती- बुद्धू और हँसती हुई फिर दुगुने उत्साह से चढ़ाई चढ़ने लगती है।
मन तो विचारों का भण्डागार है, अभी थोड़ी देर पहले तर्क उठा था अब वह कौतूहल में बदल गया। मेरे पास कोई बोझ नहीं, शरीर भी पुष्ट है, फिर भी थकावट और इस नन्हीं सी बालिका की पीठ पर सवारी है, तो भी उसके मुख पर थकावट का कोई चिन्ह नहीं। उन्होंने पूछा-बालिके। तुम इतना भारी बोझ लिये चल रही हो, थकावट नहीं लगी क्या?