संगीत में छिपी है- प्रभावोत्पादक शक्ति

August 1991

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संगीत की प्रभावोत्पादक क्षमता सर्वविदित है। वह न केवल विद्या है, वरन् एक महाशक्ति है। मन-मस्तिष्क की परितृप्ति के अनेकानेक दृश्य-अदृश्य साधन है, पर भावनाओं की तृप्ति संगीत के माध्यम से होती है। प्राचीनकाल में संगीत के बल पर प्राकृतिक शक्तियों को भी मनचाही दिशा में मोड़ा-मरोड़ा जा सकना संभव था। वह नाद ब्रह्म की साधना थी-उथल मनोरंजन का माध्यम नहीं। जब तक यह साधना का विषय रहा, तब तक न केवल उसका प्रभाव मनुष्य पर देखा गया, वरन् पशुओं को मुग्ध करने, साँपों का शमन करने, पागल, जंगली हाथियों को वश में करने से लेकर फूल खिला देने, वर्षा कराने, पत्थर पिघला देने जैसे असंभव कार्य तक सम्पन्न कर सकना संभव था। पर कालान्तर में इसे मात्र मनोरंजन का साधना बना दिया गया। इतने पर भी इसकी प्रभावोत्पादक क्षमता कम नहीं हुई। मधुर स्वर लहरियों का प्रत्यक्ष प्रभाव आज भी देखा और अनुभव किया जा सकता है।

अन्तः संवेदनाओं को उभारने में कला, साहित्य, भाषण, उद्बोधन की अपेक्षा संगीत कहीं अधिक समर्थ है। इसकी पहुँच अंतःकरण के मर्मस्थल तक है। मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक संगीत की सुमधुर ध्वनि पर थिरकने लगते हैं तथा उस प्रभाव से प्रकृति प्रदत्त स्वभाव के विपरीत आचरण करते देखे जाते हैं। इतिहास की प्रख्यात घटना है कि मुगल शासक अकबर किसी कारण से तत्कालीन प्रसिद्ध लोक कवि माघ से क्रुद्ध हो गया था। आवेश की स्थिति में उसने सेनापति को आदेश दिया कि महाकवि को दूसरे दिन भरे दरबार के सामने मद मस्त हाथी से कुचलवा दिया जाय। सभासदों को राजनिर्णय अनुचित जान पड़ा। पर विरोध कौन करता और स्वयं के लिए आपत्ति मोल लेता। महाकवि को इस तरह मृत्युदण्ड देना भी उन्हें उचित नहीं लगा क्योंकि वे बेगुनाह थे। महामंत्री सहित सभासदों की एक गुप्त सभा राजा की अनुपस्थिति में हुई। लम्बे विचार विमर्श के बाद आम सहमति हुई कि संगीत सम्राट तानसेन की मदद ली जाय। योजना गुप्त रखी गई तथा यह निश्चय हुआ कि जिस समय क्रुद्ध हाथी माघ को मारने के लिए छूटे, ठीक उसी समय तानसेन अपनी संगीत लहरी छेड़ें।

निर्धारित समय पर दूसरे दिन हाथी हुँकार भरता माघ को मारने चला। इसी बीच विलक्षण घटना घटी। तबले के ध्रुपदताल की तरंगित ध्वनि लहरी ने हाथी को सम्मोहित कर दिया। बढ़ते हुए उसके कदम रुक गये। वह उसी स्थान पर शराबी की भाँति झूमने और नृत्य करने लगा। आये दर्शक भी मंत्रमुग्ध बने इस अविश्वसनीय दृश्य को देख रहे थे। जब तक संगीत चलता रहा हाथी अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। अकबर को पूरी बात मालूम हुई। साथ ही अपने गलत निर्णय का भान भी हुआ। संगीत की चमत्कारी शक्ति के कारण पागल हाथी से महान कवि की रक्षा हुई।

बैजू बाबरा के सम्बन्ध में विख्यात है कि जब वह रागनियां छेड़ते थे, तो तपती धूप में भी घने बादल आकाश में मँडराने लगते और वर्षा आरम्भ हो जाती थी। दीपक राग की उच्चस्तरीय सिद्धि के अभ्यास से बुझे हुए दीपकों को भी अपने आप जल उठना होता था। अब तो वे घटनायें मात्र किम्वदन्ती भर बनकर रह गयी है। ऐसे नादयोग के साधक अब कहाँ मिलते हैं? तो भी संगीत की शक्ति का अस्तित्व भले-बुरे रूपों में एक शक्ति के रूप में आज भी संसार में विद्यमान है।

जनमानस में भली-बुरी प्रेरणाएँ भरने -भावनायें उभारने का यह सबसे सशक्त मनोवैज्ञानिक माध्यम है। संगीत का सदुपयोग जहाँ एक और नवनिर्माण के आधार खड़ा करता है, वहीं दूसरी ओर इसका दुरुपयोग ध्वंसात्मकता, आक्रामकता जैसी पतनोन्मुखी प्रवृत्तियों को जन्म देता है। इन दिनों प्रायः यही हो भी रहा है। पश्चिमी देशों में कुत्सित भावना को भड़काने वाला संगीत ही लोकप्रिय हुआ है, जिसने युवा पीढ़ी को उच्छृंखल, स्वेच्छाचारी बनाने में विशेष भूमिका निभाई है। इस प्रकार के उत्तेजक संगीत का आविष्कार विलहेले नामक एक अमेरिकी संगीतज्ञ ने तीस वर्ष पूर्व किया था। पॉप-पॉप की तीव्र ध्वनि के कारण यह संगीत ‘पॉप संगीत’ के नाम से विख्यात हुआ जिसकी आज सर्वत्र धूम मची है। इसका वास्तविक नाम है “वैवोपालु पॉप”।

इस शृंखला में कितनी ही अश्लील कड़ियाँ जुड़ती जा रही हैं। ‘रॉक एण्ड रोल तथा डिस्को जैसे कितने ही नृत्य सम्मिलित संगीत का आविष्कार हुआ है। इसके आविष्कारक एल्विस प्रेस्ले को इस क्षेत्र में भारी सफलता मिली जिसमें युवावर्ग अपनी सुध-बुध खोकर स्वच्छन्द आचरण, वीभत्स चेष्टायें करते हुए नृत्य करने लगे। इससे उत्साहित होकर प्रेस्ले ने शब्द विज्ञान का विशद अध्ययन कर संगीत के साथ उसके उत्तेजक प्रभावों का परिचय प्राप्त किया और पॉप संगीत की रचना की। संगीत शास्त्र के विशेषज्ञों का कहना है कि रॉक एण्ड रोल पर उच्चारित ध्वनि ‘ऊ ऊ ऊ’ की कराहें सुनने वालों में यौन भावना को असाधारण रूप से बढ़ा देती हैं। इसमें ड्रम आदि को पीट-पीट कर गला फाड़ कर चिल्लाने लगना तथा फूहड़ ढंग से कूल्हे मटकाने जैसा क्रम और जुड़ गया जिसने पॉप को जन्म दिया। इस संगीत ने स्वेच्छाचार को अत्यधिक बढ़ावा दिया।

पाश्चात्य देशों में शरीर और मन में उत्तेजना भरने वाले इस प्रकार के संगीत की इन दिनों सर्वत्र धूम है। अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों का कहना है कि सौम्य सुमधुर संगीत की स्वर लहरियाँ जहाँ शरीर, मन और आत्मा के विकास में सहायक होती हैं, वही इस तरह दुरुपयोग चल पड़ने पर संगीत अधःपतन का कारण बन सकता है। उत्तेजक ध्वनि तरंगों का प्रवाह अगणित समस्याओं को जन्म दे सकता है।

पिछले दिनों पेरिस में एक ऐसा ही उदाहरण सामने आया, जहाँ का ओलम्पिया म्यूजिक हाल श्रोताओं से खचाखच भरा था। संगीत का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। मधुर स्वरलहरी के मादक प्रभाव से श्रोतागण झूमने लगे। अचानक एक विलक्षण घटना घटी। संगीत की धुन बदली। म्यूजिक कार्यक्रम में उस धुन को गाये जाने का वह पहला अवसर था। शांतचित्त दर्शक जो संगीत प्रोग्राम को सुनने में तल्लीन थे, उस परिवर्तित धुन को सुनकर बेचैनी अनुभव करने लगे। उनकी उत्तेजना बढ़ती ही गयी और अनियंत्रण की स्थिति में जा पहुँची। पागलों की तरह श्रोता अपनी-अपनी कुर्सियों को छोड़कर एक दूसरे से संघर्ष पर उतारू हो गये। हॉल की कुर्सियाँ उन्होंने तोड़-फोड़ डालीं और खिड़कियों में लगे शीशे चकनाचूर कर दिये। संगीत सुन रही महिलाएँ भी अपना मनःसंतुलन खो बैठीं और उत्तेजना की स्थिति में स्वयं अपने वस्त्र फाड़ने-चीरने लगी। निर्वस्त्र अवस्था में उनके चीखने-चिल्लाने से हॉल गूँज उठा। देखते ही देखते वहाँ अच्छा खासा हंगामा खड़ा हो गया। आक्रामक आचरण के कारण अधिकाँश व्यक्ति घायल हो गये। संगीत आयोजकों को बिगड़ती हालत पर काबू पाने के लिए मदद के लिए पुलिस बुलानी पड़ी। तब कहीं जाकर स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सका। घायलों को अस्पताल की शरण लेनी पड़ी।

घटना के कारणों की खोजबीन आरंभ हुई। जाँच पड़ताल के दौरान संगीत की धुन की भी परीक्षा की गयी तो मालूम हुआ कि सारी घटनाओं के लिए जिम्मेदार वह उत्तेजक धुन थी जो पहली बार प्रयोग के तौर पर बजायी गयी थी। रॉक एण्ड पॉप के सम्मिलित स्वरूप से बनी उस संगीत धुन को बजाने पर शासन द्वारा पाबन्दी लगा दी गई।

ध्वनि विज्ञान के विशेषज्ञों ने अपना निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि मनुष्य के स्नायु संस्थान को असाधारण रूप से उत्तेजित करने में ऐसी धुनें पूर्ण समर्थ है। जिस पिच और फ्रीक्वेन्सी पर वह धुन तैयार की गयी थी, यह मानवी मस्तिष्क पर भारी दुष्प्रभाव डालती है। आक्रामक एवं कामुक मनोवृत्ति को भड़काने में वह विशेष रूप से सहायक है। इस घटना से वैज्ञानिकों को संगीत विद्या पर गहन अनुसंधान करने की प्रेरणा मिली। तालबद्ध, लयबद्ध अनेकानेक ध्वनियों एवं धुनों का प्रयोग परीक्षण किया गया तो विदित हुआ कि उनमें दोनों तरह की सामर्थ्य विद्यमान है।

संगीत आदिकाल से ही मनुष्य के साथ जुड़ा हुआ है और अपनी सुमधुर तरंगों द्वारा मानसिक तुष्टि का लक्ष्य पूरा करता रहा है। संगीत की शक्ति का नियोजन जनमानस की कुत्सा भड़काने, मानसिक असंतुलन पैदा करने का कारण बन सकता है जबकि शारीरिक स्वास्थ्य एवं मनः विकास का श्रेष्ठतम साधन वह है ही। ताल लय के उतार चढ़ाव, फ्रीक्वेन्सी तथा धुन में परिवर्तन करके संगीत द्वारा रचनात्मक और ध्वंसात्मक दोनों ही तरह के प्रयोजन पूरे किये जा सकते हैं। इसकी स्वास्थ्य परम्परा ही मानवी क्षमताओं के विकास में सहायक है।


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