बुद्धि हमारी विकसित हो (Kahani)

August 1991

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सन् 1757 की बात है अंग्रेज बंगाल पर अपना कब्जा करने का प्रयत्न कर रहे थे। किंतु नवाब सिराजुददौला की नीतिमयी वीरता से उनकी दाल न गलती थी। बार-बार मुँह की खाने पर अंग्रेजों ने कूटनीति से काम लिया। उन्होंने सिराजुददौला के सेनापति मीरजाफर पर डोरे डालने शुद्ध किये। उन्हें पता लग गया कि मीरजाफर एक कुशल सेनापति होते हुए भी बड़ा लालची और कमजोर आदमी है। अंग्रेजों ने उसका लाभ उठाया और उसे बंगाल का नवाब बना देने का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। मीरजाफर नवाबी का स्वप्न देखता हुआ बड़ा खुश रहने लगा।

इधर अंग्रेजों ने नई तैयारी करके बंगाल पर फिर आक्रमण किया। सिराजुददौला ने सेनापति मीरजाफर को मोर्चे पर भेजा। नवाब के सिपाही बड़ी वीरता से लड़े किन्तु गद्दार मीरजाफर ने उन्हें हतोत्साहित करके अस्त-व्यस्त कर दिया। एक विश्वासघाती के कारण अँग्रेजों की जीत हो गई, जिसके फलस्वरूप बंगाल पर उनका अधिकार हो गया।

मीरजाफर ने जब अपना वचन पूरा करने को कहा तो अंग्रेज सेनापति ने घृणा से यह कहकर उसे तलवार से मौत के घाट उतार दिया “ऐ विश्वासघाती कुत्ते! तू बंगाल का सुल्तान होने का स्वप्न देख रहा है। तेरे जैसे गद्दार को दुनिया में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। जब तू अपने मालिक और मुल्क का न हुआ, तो हमारा ही क्या होगा?”

बोलबाला रहता है। नीरस निस्तब्धता छायी रहती है और दुःस्वप्नों का सिलसिला चलता रहता है।

श्वेत दिशा वह है जो प्रगति के अरुणोदय से आरंभ होकर दिन भर चलती रहती है और सृजन पुरुषार्थ एवं सौंदर्य का माहौल बनाती है। वही वरण करने योग्य है। यह बुद्धि हमारी विकसित हो, इसी दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।


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